RAIPUR. मुहावरा है ‘दांत खट्टे करना’ अर्थात परास्त करना…इस कहावत के दोनों वाक्यों को बस्तर के आदिवासी अपने कारोबार से पूरा कर रहे हैं। यहां हम बात कर रहे हैं इमली की। बस्तर के आदिवासी परिवार रोजना 40-50 किलो तक इमली तैयार कर गरीबी को परास्त कर रहे हैं। इस इमली से आदिवासियों ने सालाना 500 करोड़ का कारोबार खड़ा कर दिया है।
जिला मुख्यालय जगदलपुर, एशिया का सबसे बड़ा इमली का बाजार बन गया है। वन विभाग के आंकड़ों के मुताबिक यहां से सालाना पांच सौ करोड़ का कारोबार होता है। दुनिया के 54 देशों को यहाँ से इमली भेजी जा रही है। बस्तर के वनोपज केवल छत्तीसगढ़ ही नहीं, बल्कि देश-विदेशों में भी निर्यात होती है।
यहां के अधिकतर आदिवासी गांव के युवा पलायन कर मजदूरी के लिए आंध्रप्रदेश, केरल, तामिलनाडु जाते थे। कोरोना के लॉकडाउन ने इस इमली के व्यापार की एहमियत को बताया। कृषि विज्ञान केंद्र बस्तर द्वारा प्रकाशित सर्वेक्षण के मुताबिक, इमली का उत्पादन करने वालों में से करीब 43 फीसदी लोग 35 साल से कम उम्र के थे। इनमें से ज्यादातर को इस काम का बीस साल का तर्जुबा है। हमारे देश में छत्तीसगढ़ एक ऐसा राज्य है, जहां के हजारों इमली के पेड़ हैं।
कई घर ऐसे भी मिल जाएंगे, जिनके आसपास दर्जनों इमली के पेड़ हैं। जो उन्हें विरासत में मिले हैं। कुछ नए भी लगाए गए हैं। एक भरे-पूरे पेड़ की फसल से साल में करीब बारह हजार रुपए मिलते हैं। ये पैसे हर पेड़ से करीब तीन से चार क्विंटल इमली बेचने से कमाए जाते हैं।