BILASPUR. लंबे समय से विवादों में घिरे और भ्रष्टाचार के मामलों में फंसे आईपीएस मुकेश गुप्ता को राज्य सरकार ने डीजी से डिमोट कर वापस एडीजी बना दिया था। हाईकोर्ट के डिवीजन बेंच ने इस निर्णय को सही ठहराया है। रिटायरमेंट की दहलीज पर खड़े मुकेश गुप्ता के लिए यह बड़ा झटका है। ऐसे में अब माना जा रहा है कि वे इसी पोस्ट से ही रिटायर होंगे।
मालूम हो कि उन्हें पूर्ववर्ती भाजपा सरकार ने 2018 के चुनाव से पहले आदर्श आचार संहिता लगने के चंद घंटे पहले ही प्रमोशन दिया था। हाई कोर्ट ने यह भी माना कि इस निर्णय में नियमों का पालन नहीं किया गया था।
आईपीएस मुकेश गुप्ता को जब प्रमोट किया गया था तो वे अतिरिक्त महानिदेशक से महानिदेशक बने थे। फिर जब राज्य में कांग्रेस की सरकार बनी तो उनके खिलाफ मिली ढेरों शिकायतों के मद्देनजर उनके खिलाफ जांच के आदेश दिए गए। फिर सरकार ने 26 सितंबर 2019 को उनकी पदोन्नति आदेश को निरस्त कर दिया था।
इस बीच राज्य सरकार के निर्णय को आइपीएस मुकेश गुप्ता ने केंद्रीय प्रशासनिक ट्रिब्यूनल यानी कैट में अपील पेश कर चुनौती दी थी। तब कैट ने मामले की सुनवाई करते हुए आईपीएस गुप्ता के पक्ष में फैसला सुनाया और उनके डिमोशन को गलत बताया गया। कैट के इस आदेश को चुनौती देते हुए राज्य सरकार ने छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में अपील की। पहले सिंगल बेंच में मामले को रखा गया था। तब बेंच ने भी आईपीएस मुकेश गुप्ता के पक्ष में निर्णय देते हुए कैट के फैसले पर ही मुहर लगा दी थी।
दो- दो महत्वपूर्ण न्यायालयों में राज्य सरकार के डिमोशन के निर्णय को अनुचित ठहराने के बाद इसे ही अंतिम फैसला माना जा रहा था और इसे आईपीएस गुप्ता के पक्ष में बड़ी जीत के रूप में देखा जा रहा था। तब राज्य सरकार ने भी सिंगल बेंच के निर्णय को डिवीजन बेंच में चुनौती देने का फैसला किया गया। अपील पेश की गई।
इस प्रकरण को हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस अरूप कुमार गोस्वामी और जस्टिस दीपक तिवारी के बेंच में रखा गया था। लंबी सुनवाई के बाद बीते दिनों फैसला सुरक्षित रख लिया गया था। बुधवार को इस पर निर्णय सुनाया गया। इसमें राज्य सरकार के आईपीएस गुप्ता की पदोन्नति को निरस्त करने के निर्णय को सही बताया गया।
प्रमोशन से पहले केंद्र से नहीं ली गई थी अनुमति
अपने निर्णय में डिवीजन बेंच ने भाजपा शासनकाल में उन्हें दिए गए प्रमोशन की प्रक्रिया पर भी सवाल उठाया गया। इसमें कहा गया है कि आईपीएस व डीजी स्तर पर प्रमोशन देने से पहले केंद्र सरकार से अनुमति लेना जरूरी होता है। इनके मामले में ऐसा नहीं किया गया था। वहीं इसी गलत निर्णय की भरपाई के लिए लिए फैसले को सही निर्णय बताया गया है।
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