मंदसौर। मध्य प्रदेश के मंदसौर जिले में भगवान पशुपतिनाथ मंदिर परिसर के निकट सहस्त्र शिवलिंग मंदिर बनाया जा रहा है। यहां जितनी अद्भुत और दुर्लभ सहस्त्र शिवलिंग प्रतिमा है, उतना ही अजब संयोग भी इस मंदिर से जुड़ते जा रहे हैं।
जहां इंजीनियर हार मान जाते हैं वहां टनों वजनी प्रतिमा को शहर के एक अनपढ़ ने स्थापित कराया। ऐसा ही एक और संयोग सामने आया है। यहां दुनिया का सबसे वजनी और बड़े घंटे को स्थापित किया गया है।
मध्य प्रदेश के मंदसौर जिले के पशुपतिनाथ मंदिर परिसर में निर्माणाधीन सहस्त्र शिवलिंग मंदिर के पास देश का सबसे बड़ा और वजनी घंटा स्थापित किया गया है। बताया जा रहा है कि स्थापित किया गया यह घंटा दुनिया का सबसे वजनी और बड़ा है, जिसे बनवाने के लिए कामधेनु संस्था ने घर-घर यात्रा निकालकर तांबा पीतल जैसी धातुएं एकत्रित की थी।
बड़ी संख्या में शहरवासियों की उपस्थिति में मंदसौर के भगवान पशुपतिनाथ मंदिर में सबसे बड़ा 3700 किलो का महाघंटा रविवार को स्थापित किया गया। यह दुनिया का सबसे बड़ा और वजनी घंटा हो सकता है। मध्य प्रदेश के दतिया में रतनगढ़ माताजी मंदिर में 1635 किलो का घंटा स्थापित है। रविवार को सहस्त्र शिवलिंग मंदिर परिसर में महाघंटा की स्थापना की गई।

क्रेन की मदद से स्थापित 3700 किलो का महाघंटा।
जानकारी अनुसार इस महाघंटे के लिए वर्ष 2017 में अभियान चलाया गया था। श्री कृष्ण कामधेनु संस्था द्वारा जिले में 150 यात्राओं के माध्यम से मंदसौर शहर और ग्रामीण इलाकों से तांबा पीतल जैसी धातुए एकत्रित कर इसका निर्माण किया।
इस घंटे के निर्माण के लिए श्रद्दालुओं ने पूरा सहयोग दिया। अपने घरों में पड़े पुरानी धातुओं से बने बर्तन महाघण्टा निर्माण के लिए दान में दिए। इन्हीं धातुओं से महाघंटे का निर्माण गुजरात के अहमदाबाद में करवाया गया है। महाघंटे के बाहरी किनारे पर भगवान पशुपतिनाथ की आकृतियां बनाई गई है।
बताया जा रहा है कि प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के हाथों महाघंटे का उद्घाटन किया जाएगा। इसी दिन सहस्त्र शिवलिंग मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा भी मुख्यमंत्री के हाथों की जाएगी।
आपको बता दें कि मंदसौर के भगवान पशुपतिनाथ मंदिर परिसर के निकट बनाए जा रहे सहस्त्र शिवलिंग मंदिर में जितनी अद्भुत और दुर्लभ सहस्त्र शिवलिंग प्रतिमा है, उतना ही अजब संयोग भी इस मंदिर से जुड़ते जा रहे हैं। जहां मंदिर में प्रतिमा को स्थापित करने के लिए इंजीनियरों ने हार मान ली थी, वहीं शहर के अनपढ़ मकबूल ने बर्फ के टुकड़ों के साथ प्रतिमा को आसानी से स्थापित करवा दिया था।
अब महाघंटा लगाने के लिए जहां इंजीनियर और प्रशासन के अधिकारियों ने मना कर दिया था। वहीं शहर के दूसरी पास इंजीनियर नाहरू भाई ने ना सिर्फ महाघंटे को बेहतर तरीके से स्थापित किया, बल्कि इसे अब भक्त बजा भी पाएंगे।
कलेक्टर गौतम सिंह ने भी इस पर हैरानी जताई है कि उन्हें भी विश्वास नहीं था कि महाघंटे को इस तरह स्थापित किया जा सकेगा। इसे श्रद्धालु बजा भी सकते हैं। इसके साथ ही मंदिर निर्माण में भी कई दिव्यांग कारीगरों ने अपनी सहभागिता निभाई है।
(TNS)