तीरंदाज, इंदौर। फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से फाल्गुन पूर्णिमा तक होलाष्टक माना जाता है, जिसमें शुभ कार्य वर्जित रहते हैं। होलिका दहन से आठ दिन पहले होलाष्टक शुरू हो जाते हैं जो 10 मार्च से 18 मार्च तक चलेंगे। फाल्गुन अष्टमी से होलिका दहन तक आठ दिनों तक होलाष्टक रहेगा। पूर्णिमा के दिन होलिका-दहन किया जाता है। होलिका दहन के दूसरे दिन होली मनाने का प्रचलन है।
पंचांग के अनुसार होली का पर्व चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा को मनाया जाता है। इंदौर के ज्योतिषाचार्य पंडित गिरीश व्यास ने बताया कि होलिका दहन 17 की रात 12 बजकर 57 मिनिट के पश्चात किया जा सकता है। आज भी अनेकों राज्य एवं अनेकों क्षेत्र में होलिका दहन रात्रि 3:00 से 6:00 बजे के बीच में किया जाता है।
इस आधार पर 18 की सुबह 04 बजे से 5:30 के बीच होलिका दहन किया जाएगा। परंतु जहां धुलेडी के एक दिन पूर्व रात्रि को होलिका दहन किया जाता है, वहां होलिका दहन रात्रि 12 बजकर 57 मिनट बाद ही किया जाएगा। भद्रा 18 को न होने से तथा चंद्रमा भी कन्या राशि में सुबह 06 बजकर 31 मिनट पर आने से होली और धलेंडी का त्योहार 18 मार्च 2022 को ही मनाया जाएगा।
इंदौर के ज्योतिषाचार्य कहते हैं कि 17 मार्च को रात 12 बजकर 57 मिनट के बाद होलिका दहन का योग बन रहा है। इसके पहले भद्रा है, वह भी पृथ्वीलोक पर है। भद्रा में होलिका दहन नहीं हो सकता है।
भद्राकाल में इसलिए नहीं करते शुभकार्य
इंदौर के ज्योतिषाचार्य पंडित गिरीश व्यास ने बताया कि पुराणों के अनुसार, भद्रा की प्रवृत्ति विध्वंस करने की मानी जाती है। इस लिए भद्रा लगने पर कोई शुभ कार्य नहीं किए जाते। पुराणों के अनुसार भद्रा ने अपने ही विवाह मंडप में उत्पात मचा दिया था। इस कारण अगर शुभ कार्यों का आयोजन भद्रा काल में किया जाता है, तो परिणाम अच्छे नहीं होते हैं।