रायपुर। राज्य सरकार की गोधन न्याय योजना आम लोगों के जीवन में इनता परिवर्तन लाएगी इस बारे में किसी ने सोचा नहीं था। प्रदेश में गोवंश की सुरक्षा के साथ गोबर से बने उत्पाद का बाजार बढ़ता जा रहा है। पुरातन काल में एक समय ऐसा था जब मवेशियों के गोबर का इस्तेमाल खाद के रुप में और कंडे (उपला) बनाकर ईंधन के रूप में किया जाता था। तब यह आय को साधन नहीं हुआ करते थे। छत्तीसगढ़ सरकार की योजना और उसके क्रियान्वयन के बाद अब छत्तीसगढ़ में गोबर से बनी वस्तुओं की डिमांड देशभर में हो रही है। दीपावली में गोबर के दीयों की खूब बिक्री के बाद अब राजधानी रायपुर में गोबर के चप्पल बनाए जा ऱहे है।
गोबर से चप्पल बनाने की योजना को मूर्त रूप देने वाले गोकुलनगर गोठान के संचालक और युवा उद्यमी रितेश अग्रवाल बताते है कि वे पालीथिन से फैलते प्रदूषण को लेकर काफी समय से चितिंत थे। उन्होंने पालीथिन का इस्तेमाल बंद कर दिया है। इससे मानव समाज के साथ मवेशियों को भी खासा नुकसान हो रहा था। गोकुलनगर में जब गोठान का संचालन शुरू किया तो पहले गोबर से दीये बनाए। वर्मी कम्पोस्ट बनाने के बाद गोबर से चप्पल बनाने का आइडिया मन में आया। फिर इसके लिए रिसर्च किया, विशेषज्ञों से चर्चा की। प्यान बनाया और इसे मूर्त रूप दिया।
गोठान की आय बढ़ी
राज्य सरकार की मंशानुरुप प्रदेश में गोठान शुरू तो हो गए लेकिन गोठान की आय बढ़ाना बड़ी चुनौती थी। फिर गोबर से दीये, ईंट, भगवान की प्रतिमाएं और अब चप्पल बनाना शुरू किया। इस वर्ष क दीपावली में एक लाख 60 हजार दीए की बिक्री हुई हैं।
चप्पल की कीमत 400 रुपये
रितेश ने बताया कि चप्पलों को बीपी, शुगर के मरीज और गौ भक्तों के लिए सैंपल के तौर पर बनाया गया है। इसके स्वास्थ्य के लाभ को जानने के लिए हमने लोगों को रोजाना चप्पल पहनने के टाइमिंग और बीपी और शुगर नोट करने के लिए बोला है। एक जोड़ी चप्पल की कीमत 400 रुपये है।
चप्पल पानी में नहीं होंगे खराब
गोहार गम, आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियां, चूना और गोबर पाउडर को मिलाकर चप्पल का निर्माण किया जा रहा है। इन दिनों गौशाला में 15 लोगों को रोजगार मिल रहा है। यहां महिलाएं करीब एक किलो गोबर से 10 चप्पलें बना रही हैं। इन चप्पलों को घऱ और बाबर कहीं भी पहनकर जाया जा सकता है।