रायपुर। छत्तीसगढ़ में नक्सल प्रभावित कोंडागांव जिला (Kondagaon District) कुपोषण (Malnutrition) से निपटने में सफलता पाई है। मुख्यमंत्री सुपोषण अभियान (Chief Minister Nutrition Campaign) के बाद कोंडागांव जिले में कुपोषण (Malnutrition) की दर लगभग साढ़े 41 फीसदी तक कमी आई है। जिला प्रशासन के अनुसार सरकार के निर्देश पर यहां पोषण आहार के लिए विशेष तौर पर प्रयास किए गए। इसके तहत बच्चों को अंडा खिलाने के साथ स्थानीय स्तर पर रागी और पौधों से बने पोषण आहार को भी आंगनबाड़ी केंद्रों(Anganwadi Center) में मुहैया कराया जा रहा है। अंडा उत्पादन यूनिट लगाने से अच्छे नतीजे भी सामने आए हैं। कुपोषण में कमी आने के साथ नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में आजीविका विकास के साधन भी बढ़े हैं।
दरअसल, छत्तीसगढ़ के धुर नक्सल प्रभावित माने जाने वाले उत्तर बस्तर क्षेत्र के कोंडागांव जिले में अच्छा परिणाम सामने आने लगा है। आदिवासी बहुल जिले में कुपोषण के खिलाफ योजनाबद्ध ढंग से जंग लड़ा गया। इससे बीते डेढ़ साल में 41 फ़ीसदी से अधिक कमी को उपलब्धि माना जा रहा है। बेहतर रणनीति के साथ अभियान की मॉनिटरिंग के बाद कुपोषण की दर लगातार गिरती चली गई। यहां बच्चों को प्रोटोन युक्त खाद्य पदार्थ देने के लिए सबसे पहले जिला प्रशासन ने अंडा उत्पादन यूनिट लगाया। बता दें कि अंडे को लेकर पहले काफी विवाद भी हुआ था। विपक्ष ने इस मामले में सवाल भी उठाए थे। इसके बावजूद कुपोषित बच्चों को अंडा खिलाने से सुपोषण की दर में कमी आने लगी। जिला प्रशासन का मानना है कि अब यहां दूसरी भी अंडा उत्पादन यूनिट लगाई जाएगी। इसके अलावा बस्तर क्षेत्र में स्थानीय स्तर पर कोदो और रागी से भी पोषण आहार तैयार कराया जा रहा है।
आंगनबाड़ी केंद्रों के जरिए इसके वितरण के साथ अब हाईटेक सिस्टम से मॉनिटरिंग हो रही है। इसके लिए बकायदा सोशल मीडिया के जरिए भी संपर्क चल रहा है। अंडे और बच्चों तक अनाज पहुंचाने के लिए व्हाट्सएप ग्रुप भी बनाए गए है।ं इस दौरान पोषण आहार खाने वाले बच्चों की तस्वीरें भी इस ग्रुप में डाली जाती हैं। जिला कलेक्टर सीधे इसकी मॉनिटरिंग करते हैं। गौरतलब है कि पहले नक्सली प्रभावित क्षेत्र होने की वजह से कोंडागांव जिला विकास की मुख्यधारा से दूर होता चला गया था। जिला मुख्यालय को छोड़ दें तो जिले के आसपास कई गांव विशेष तौर पर दूरस्थ ग्राम कुपोषण की चपेट में थे। इसके चलते यहां बच्चों में स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं भी सामने आती रहीं। कुपोषण की दर लगातार बढ़ाना भी प्रशासन की बड़ी चुनौती थी। राज्य सरकार ने इसे गंभीरता से लिया और कुपोषण की इस जंग में सफलता भी मिली।
ऐसी मिली कुपोषण पर जीत
आंकड़ों पर नजर डालें तो 2019 की शुरुआत में यहां लगभग 37 फ़ीसदी बच्चे कुपोषित पाए गए थे। इसके तत्काल बाद कोरोना और लॉकडाउन की वजह से भी इस अभियान की सफलता पर संदेह नजर आने लगा था। वहीं यह सरकार के लिए बड़ी चुनौती थी। जिला प्रशासन ने इस दौरान भी बेहतर ढंग से अभियान को अमलीजामा पहनाते हुए काम शुरू किया। 2020 में इस योजना की शुरुआत के साथ कवायद तेज हुई। प्रशासन ने पहले कुपोषित बच्चों की पहचान के लिए बेसलाइन स्क्रीनिंग शुरू की। इस दौरान करीब 12000 से अधिक बच्चे कुपोषित पाए गए। आंगनबाड़ी के जरिए लगातार क्रियान्वयन और मॉनिटरिंग पर जोर दिया गया। अफसरों की मानें तो इस दौरान उड़ान नाम से एक कंपनी शुरू की गई, जिसमें स्व सहायता समूह को भी जोड़ा गया। इसके जरिए आंगनवाड़ी केंद्रों में पोषण आहार भी भेजे गए और अब बच्चों को अंडे, चिक्की बिस्किट, बाजरे की खिचड़ी, रागी और पौधों से बने आहार भी दिए जा रहे हैं।
कुपोषण को मात देकर सुपोषण अभियान ने बनाया रिकॉर्ड
उच्च गुणवत्ता वाले ऑर्गेनिक पोषण आहार के चलते बच्चों में आश्चर्यजनक परिवर्तन आया। कोरोना काल के दौरान भी मुख्यमंत्री सुपोषण अभियान ने रिकॉर्ड बनाया। वहीं वर्ष 2019 की तुलना में 2021 में कुपोषण की दर 15 फ़ीसदी से अधिक गिरावट दर्ज की गई। इस अभियान में युवाओं की भागीदारी भी सुनिश्चित कराई गई। सुपोषण मित्र के तौर पर नियुक्ति के बाद युवाओं ने अहम भूमिका निभाई। कलेक्टर लगातार मासिक समीक्षा कर दिशा-निर्देश दे रहे है। देश में कुपोषण की गंभीर स्थिति के बावजूद कोंडागांव जिला एक बार फिर बड़ा उदाहरण बनकर सामने आया है।
(TNS)