NEW DELHI.मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने हाल ही में एक टिप्पणी करते हुए कहा कि अगर एक पत्नी अपने पति और उसके परिवार के प्रति अपमानजनक व्यवहार करे, तो इसे पति के प्रति उसकी क्रूरता माना जाएगा. पारिवारिक न्यायालय द्वारा पति को दी गई तलाक से जुड़ी डिक्री में क्रूरता के आधार पर न्यायमूर्ति शील नागू और न्यायमूर्ति वीरेंद्र सिंह की पीठ ने महिला की अपील को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की. उच्च न्यायालय के समक्ष अपील में पत्नी ने आरोप लगाया कि वास्तव में उसके प्रति पति का व्यवहार जिम्मेदार था, जिसने उसे अपने नाबालिग बेटे के साथ ससुराल छोड़ने के लिए मजबूर किया.
हालांकि पहले-पहल पति ने क्रूरता और परित्याग के आधार पर पारिवारिक अदालत के समक्ष तलाक के लिए याचिका दायर की. इसमें अदालत ने दोनों आधारों को सिद्ध पाया, लेकिन तकनीकी कारणों से ‘क्रूरता’ के आधार पर याचिका पर सुनवाई की अनुमति दे दी. उच्च न्यायालय के समक्ष पत्नी ने आरोप लगाया कि तलाक की डिक्री पारित करते समय परिवारिक अदालत ने केवल पति के पहलुओं और विवादों पर विचार किया. विरोधाभासों के बावजूद उसके द्वारा प्रस्तुत सबूतों पर गलत विश्वास किया. उसने कहा कि उसके प्रति पति की हरकतें उनके अलगाव का कारण थीं. हालांकि अपील का विरोध करते हुए पति ने कुछ और ही कहा.
उच्च न्यायालय ने कहा कि पति ने आरोप लगाया था कि एक आईपीएस अधिकारी की बेटी उसकी पत्नी बेहद घमंडी, जिद्दी, गुस्सैल और दिखावा पसंद थी. वह उसके परिवार के सदस्यों का अपमान भी करती थी. अदालत ने कहा कि पति ने ट्रायल कोर्ट के समक्ष अपनी मुख्य सुनवाई में आरोप लगाया था कि जिस दिन उसकी पत्नी ने ससुराल में प्रवेश किया, उसने यह कहते हुए सभी की अवज्ञा करना शुरू कर दिया कि वह एक प्रगतिशील लड़की है. पत्नी की तर्क था कि उसे न तो परंपराएं पसंद हैं और न ही उनका पालन करना. अपने निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए अदालत ने वी. भगत बनाम डी. भगत (1994) में निर्णय सहित सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों के एक समूह का उल्लेख किया, जिसमें सर्वोच्च न्यायालय ने धारा 13(1)(i-a) में मानसिक क्रूरता को रखा था. मोटे तौर पर इसमें आचरण को परिभाषित किया जा सकता है जो दूसरे पक्ष को ऐसी मानसिक पीड़ा देता है, जिससे उस पक्ष के लिए दूसरे के साथ रहना संभव नहीं होता.
इसके अलावा अदालत ने कहा कि फैमिली कोर्ट अपने बहुत लंबे फैसले में स्पष्ट रूप से हर पहलू को छूते हुए इस निष्कर्ष पर पहुंचा था कि पति और उसके गवाहों के बयान विश्वसनीय थे, जबकि पत्नी के आरोप टिक नहीं पाए. यह सब दिखाता है कि पत्नी उसे और उसके पूरे परिवार को परेशान और प्रताड़ित कर रही थी. अदालत ने अपने निर्णय में माना कि जिरह में पति का बयान बरकरार रहा. उसके छोटे भाई सहित तमाम गवाह मजबूती से उसके साथ खड़े थे. ऐसे में पत्नी के पति के साथ रहने की इच्छा नहीं होने के मद्देनजर उसके द्वारा ससुराल छोड़ने के बताए गए कारण संतोषजनक, न्यायसंगत और उचित नहीं थे. इस आधार पर हाई कोर्ट ने फैमिली कोर्ट के फैसले में दखल देने से इंकार कर दिया.