ATUL MALAVIYA. आज जब गाज़ा पट्टी की ओर युद्ध में जाते अपने बेटे को विदा करते हुए इज़रायली प्रधानमंत्री नेतन्याहू की तस्वीरें हमें भावविभोर कर रही हैं। ऐसे में आपको बताता हूं सच्ची घटना एक 18 वर्षीय युवक “तामिर” की। इसने जेरूसलम की ओर बढ़ते हुए जूडियन पहाड़ी की “बाब अल वाद” की घाटी पर इज़रायल के कब्जे के लिए हंसते हुए न सिर्फ अपने प्राणों का बलिदान कर दिया, बल्कि मरते-मरते एक बड़ी सी चट्टान पर अपने भलभल बहते खून से एक ऐसी कविता लिखी, जो अब एक स्मारक है। आज 75 साल बाद भी यहूदी युवाओं को देश के लिए अपने प्राणों की आहुति देने के लिए प्रेरित करता है। मैंने कविता का हिंदी अनुवाद किया है, जिसे पढ़कर शायद ही कोई होगा जो अपने आंसू रोक सके।
ज़िओन पहाड़ी पर स्थित पुराने जेरूसलम की यहूदी बस्ती में एक लाख यहूदी निवास करते थे। नीचे मैदान में हुलदा गांव से “बाब अल वाद” की तीखी घाटी शुरू होकर जुडियन पहाड़ी से जाफ़ा गेट तक आने वाले सर्पाकार रास्ते के दोनों तरफ अरब मुस्लिमों के गाँव थे। यही एकमात्र रास्ता था जिससे यहूदियों तक रसद पहुँचाई जा सकती थी और इसकी आपूर्ति के लिए प्रति सप्ताह कम से कम 30 ट्रकों का भेजना जरूरी था।
इस रास्ते को ही जेरूसलम के यहूदियों के जीवन की चाबी कहा जा सकता है। अरबों के कमांडर “अब्दुल कादर हुसैनी” ने ललकार लगाई – “यह रास्ता यहूदियों के ह्रदय तक खून पहुंचाने वाली नस है, इस नस को मरोड़कर हम यहूदियों को ख़त्म कर देंगे और जेरूसलम पर कब्जा कर लेंगे”।
मुस्लिम गड़रियों को बंदूकें और ट्रेनिंग दी जाने लगी। रास्ते पर नज़र रखो, बंदूक के एक फायर की आवाज़ पर हज़ारों अरब ग्रामीण हाथों में बंदूकें नचाते हुए कुछ मिनिटों में ही इकट्ठे होकर कॉन्वॉय में शामिल ट्रकों पर हमला कर देते। यहूदी सैनिकों को मार डालते और सामग्री लूट लेते। अरबों के कमांडर अब्दुल कादर ने स्वयं ऐसे पहले जत्थे का नेतृत्व किया। नीचे हुल्दा गाँव में, जहाँ यहूदियों के ट्रक एकत्रित होकर आगे कॉन्वॉय बढ़ती, कादर के जासूस ट्रांसमीटर लिए तैयार रहते, जैसे ही कॉन्वॉय आगे बढ़ती ऊपर जुडियन पहाड़ी पर अब्दुल कादर तक संदेश पहुँच जाता।
यहूदियों की हर कॉन्वॉय लूट ली जाती। सैकड़ों ट्रक, उनका सामान दुश्मन के कब्जे में चला गया। उनके ड्राईवर, सहयोगी शहीद होते रहे। डेविड के शहर जेरूसलम की पुरानी बस्ती में एक लाख यहूदियों की हालत चूहेदानी में फंसे उन चूहों की तरह हो गयी, जिनके रोटी के टुकड़े अब समाप्त हो चुके थे। भूखों मरने की नौबत आ गयी। यदि चंद दिनों और रसद नहीं पहुँची तो जेरूसलम से यहूदी कौम का नामोनिशान मिट जायेगा। ट्रकों में जाने को तैयार यहूदी कौन होते? ये बच्चे ही थे, पंद्रह सोलह साल से बीस इक्कीस साल के किशोर, युवा। आज बीस शहीद होते तो कल जाने के लिए फिर बीस सीना तानकर खड़े हो जाते।
अठारह वर्षीय एक यहूदी युवा ड्राईवर तामिर घर से जब चला तो माँ ने हसरत भरी निगाहों से अपने बच्चे को देखा, उसके हाथ में डिब्बा देते हुए कहा – बेटा, तेरी पसंद का खाना है इसमें, खा जरूर लेना। ऐसा कहकर उस माता ने मुंह फेर लिया। कहीं वह बेटा, जिसके वापिस आने की संभावना लगभग नहीं है, आँखों में आंसू न देख ले। मां का लाड़ला तामिर ट्रक स्टार्ट कर गुनगुनाता, सीटी बजाता हुआ जुडियन पहाड़ी की ओर बढ़ा। जैसे ही “बाब अल वाद” की घाटी आई, एक अजीब सा सन्नाटा हवा में पसर गया।
अचानक पहाड़ियों की चट्टानों के पीछे से सैकड़ों अरब हाथों में बंदूकें और ग्रेनेड लिए “अल्ला हू अकबर” चिल्लाते हुए दौड़े। ट्रकों पर बमों की बरसात होने लगी। तामिर के पीछे के दो ट्रक शोलों में लिपट चुके थे, अरबों की बंदूकों ने यहूदी ड्राइवरों को भून कर रख दिया। यहूदियों ने भी गोलियां बरसाईं, लेकिन कोई फायदा नहीं, आधे घंटे के अंदर सारे ट्रकों को लूटकर आटा, फल, सब्जियाँ, अंडे, दवाइयां और कपड़ों को अरबों ने जब्त कर लिया।
तामिर का जलता हुआ ट्रक नीचे खाई में गिरा और वह झटके से घाटी में कूद गया। ऊपर देखता है तो अरब अभी भी उसपर गोलियों की बौछार छोड़ रहे हैं। तामिर ने देखा कि उसके चारों ओर ट्रकों के मलबे के साथ उसके यहूदी साथियों के कंकाल पड़े हैं। तामिर ने सोचा कि मेरी बंदूक में तो एक गोली भी नहीं बची, जिससे मैं दुश्मन के हाथ मरने की जगह स्वयं को समाप्त कर लूँ। तभी उसकी नजर एक तरफ लुढ़के हुए उस टिफिन बॉक्स पर पड़ी, जिसमें मां का दिया खाना था। अचानक उसे जोरों की भूख लगने लगी। उसने डिब्बे में से खाना निकालकर खाया। कविह्रदय तामिर ने अपने शरीर से फव्वारे की तरह बहते खून से चट्टान पर मरने के पहले जो कविता लिखी वह आज भी पढ़ी जा सकती है:
ओ “बाब अल वाद” की घाटी,
तेरी गोद में दम तोड़ता हुआ मैं,
याद करता हूं अपनी प्यारी मां की गोद को
ओ बाब अल वाद, मेरी मां से कहना,
तामिर ने पेट भर खाना खा लिया था,
ओ बाब अल वाद, ये लोहे के कंकाल उसी तरह खामोश हैं जैसे मेरे मित्रों के शरीर
ओ “बाब अल वाद”, हमारे नामों को कहीं भुला तो न दोगे
अपने तेज़ घुमाव और गहरे होने पर घमंड न कर “बाब अल वाद”
अगर जेरूसलम जाने का रास्ता नहीं दोगे
तो हम तुम्हें इन लोहे और मानव शरीर के कंकालों से पाट देंगे
ओ “बाब अल वाद” की घाटी, मेरी बात याद रखना