BILASPUR NEWS. सिर्फ वकील बदलने से फैसले बदल जाएंगे—इस सोच पर छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने कड़ा प्रहार किया है। सुप्रीम कोर्ट से एसएलपी खारिज होने के बाद दोबारा हाई कोर्ट में रिव्यू पिटीशन दायर करना एक सरकारी कर्मचारी को भारी पड़ गया। हाई कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए इसे न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग बताया और याचिकाकर्ता पर 50 हजार रुपये का जुर्माना लगा दिया।
हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच ने स्पष्ट कहा कि जब सुप्रीम कोर्ट से मामला अंतिम रूप से निपट चुका हो, तब रिव्यू के नाम पर दोबारा कोर्ट का दरवाजा खटखटाना न केवल गलत है, बल्कि न्यायिक समय की बर्बादी भी है।

याचिकाकर्ता संजीव कुमार यादव एक सरकारी कर्मचारी हैं, जिन पर विभागीय जांच में दोष सिद्ध हुआ था। सजा के तौर पर उनकी चार वेतनवृद्धियां रोकी गई थीं। इसके खिलाफ उन्होंने हाई कोर्ट की सिंगल बेंच में याचिका दायर की, जिसे जनवरी 2025 में खारिज कर दिया गया। इसके बाद डिवीजन बेंच में अपील की गई, लेकिन मार्च 2025 में वह भी निरस्त हो गई। हार के बाद वे सुप्रीम कोर्ट पहुंचे, जहां अगस्त 2025 में उनकी विशेष अनुमति याचिका (SLP) भी खारिज कर दी गई। सुप्रीम कोर्ट से राहत न मिलने के बावजूद याचिकाकर्ता ने दोबारा हाई कोर्ट में रिव्यू पिटीशन दायर कर दी।

वकील बदलना ‘स्वस्थ परंपरा नहीं’
चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस रविंद्र कुमार अग्रवाल की बेंच ने इस बात पर नाराजगी जताई कि याचिकाकर्ता ने हर स्तर पर अलग-अलग वकील बदलकर याचिकाएं दायर कीं। कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व फैसले का हवाला देते हुए कहा कि बिना किसी स्पष्ट त्रुटि के केवल वकील बदलकर रिव्यू याचिका दाखिल करना बार की स्वस्थ परंपरा और न्यायिक अनुशासन के खिलाफ है।

माफी पर मिली राहत, जुर्माना घटा
कोर्ट ने शुरुआत में याचिकाकर्ता पर 2 लाख रुपये का जुर्माना लगाने का संकेत दिया था, लेकिन वकील द्वारा बिना शर्त माफी मांगने पर नरमी दिखाते हुए जुर्माना घटाकर 50 हजार रुपये कर दिया गया।

अनाथ बच्चों के काम आएगा जुर्माना
कोर्ट ने निर्देश दिया कि जुर्माने की राशि सरकारी विशेषीकृत दत्तक ग्रहण एजेंसी, गरियाबंद को दी जाएगी। रकम एक महीने के भीतर जमा करनी होगी, अन्यथा इसे भू-राजस्व की तरह वसूला जाएगा।


































