NEW DELHI/RAIPUR NEWS. लोकसभा में आज रायपुर सांसद बृजमोहन अग्रवाल ने एक राष्ट्रीय स्तर की समस्या को जोरदार ढंग से उठाया और सरकार तथा गृह मंत्रालय से मांग की कि इंश्योरेंस क्लेम, चोरी के मामलों और अप्राकृतिक मृत्यु जैसी परिस्थितियों में आवश्यक पुलिस रिपोर्टों और पोस्ट मॉर्टम रिपोर्ट की पूरी प्रक्रिया को पूरी तरह ऑटो डिजिटल और पारदर्शी बनाया जाए। सांसद ने कहा कि इस कदम से पीड़ित परिवारों को किसी भी प्रकार की देरी, भ्रष्टाचार या उत्पीड़न का सामना नहीं करना पड़ेगा और उन्हें तुरंत आवश्यक दस्तावेज़ उपलब्ध होंगे।

आज लोकसभा में एक अत्यंत महत्वपूर्ण मुद्दा उठाते हुए, भारत सरकार से आग्रह किया कि इंश्योरेंस क्लेम और अप्राकृतिक मृत्यु के मामलों में पोस्ट–मॉर्टम रिपोर्ट हेतु पुलिस द्वारा जारी नॉन-ट्रेसेबल सर्टिफिकेट की प्रक्रिया को पूरी तरह ऑटो–डिजिटल किया जाए।

लोकसभा में सांसद ने क्या कहा ?
सांसद अग्रवाल ने शून्यकाल में स्पष्ट किया कि जब किसी परिवार में अप्राकृतिक मृत्यु होती है, तो परिवार पहले ही दुख और मानसिक दबाव में होता है। ऐसे समय में उन्हें पोस्ट–मॉर्टम रिपोर्ट या अन्य आवश्यक दस्तावेज़ों के लिए पुलिस स्टेशन के चक्कर लगाने पड़ते हैं, जो न केवल अमानवीय है बल्कि न्याय के साथ भी खिलवाड़ करता है। इसी प्रकार चोरी की घटनाओं में नॉन-ट्रेसेबल सर्टिफिकेट प्राप्त करना लंबी, थकाऊ और कई बार भ्रष्टाचार से भरी प्रक्रिया बन जाती है, जिससे इंश्योरेंस क्लेम महीनों तक अटक जाते हैं और पीड़ितों को आर्थिक और मानसिक परेशानी झेलनी पड़ती है।

पोस्ट मॉर्टम रिपोर्ट ऑटो डिजिटल की मांग की
सांसद ने कहा कि यदि इन प्रक्रियाओं को पूर्णत: डिजिटल किया जाए, तो मानवीय हस्तक्षेप समाप्त होगा और शोषण की संभावना स्वतः खत्म हो जाएगी। उन्होंने इस मुद्दे की गंभीरता को स्पष्ट करते हुए बताया कि यह केवल किसी एक राज्य की समस्या नहीं है, बल्कि राष्ट्रीय स्तर की प्रणालीगत विफलता है। सांसद ने उदाहरण देते हुए बताया कि हाल ही में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) को रिश्वतखोरी के मामलों में स्वतः संज्ञान लेना पड़ा और कर्नाटक सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों चीफ सेक्रेट्री और डीजीपी को नोटिस जारी करना पड़ा था।

CCTNS से जोड़कर रिपोर्ट सीधे मोबाइल पर
सांसद अग्रवाल ने प्रस्ताव दिया कि इन सभी सेवाओं को CCTNS (Crime & Criminal Tracking Network & Systems) से जोड़ा जाए, ताकि पुलिस द्वारा जारी सभी रिपोर्टों की ऑटो-डिलीवरी सीधे पीड़ितों के मोबाइल फोन पर उपलब्ध कराई जा सके। इसके साथ ही उन्होंने प्रक्रिया को समयबद्ध, पारदर्शी और ट्रैक करने योग्य बनाने की भी मांग की, जिससे नागरिकों को अपनी रिपोर्ट की स्थिति हर समय पता हो और उन्हें किसी भी अनावश्यक झंझट या भ्रष्टाचार का सामना न करना पड़े।


































