BILASPUR NEWS. छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने नर्सरी और प्ले-स्कूलों को लेकर राज्य सरकार की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति रविंद्र कुमार अग्रवाल की डिवीजन बेंच ने स्पष्ट कहा कि 19 नवंबर 2025 को स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा जारी गाइडलाइन में सजा का कोई प्रावधान नहीं है, जिससे यह केवल कागज़ी औपचारिकता बनकर रह गई है। कोर्ट ने कहा कि बिना दंड प्रावधान के ऐसी गाइडलाइन का कोई प्रभावी कानूनी मूल्य नहीं है।

डिवीजन बेंच ने प्री-नर्सरी और नर्सरी स्कूलों के संचालन को लेकर राज्य सरकार की तैयारियों पर कड़ी नाराज़गी जताते हुए कहा कि गाइडलाइन जारी करने से पहले स्पष्ट, सख्त और पारदर्शी नियम बनाए जाने चाहिए, ताकि निशुल्क शिक्षा देने वाले संस्थानों में अनियमितताओं पर जवाबदेही तय हो सके।

यह मामला भिलाई निवासी सी. भगवंत राव द्वारा दायर जनहित याचिका से जुड़ा है, जिसमें आरटीई के तहत नर्सरी स्कूलों के संचालन के नियम तय न होने सहित अन्य मुद्दे उठाए गए हैं। इसी विषय पर सामाजिक कार्यकर्ता विकास तिवारी सहित अन्य याचिकाओं पर भी एक साथ सुनवाई की जा रही है।

शिक्षा सचिव का शपथ पत्र — 976 शिकायतें, 809 अब भी लंबित
हाईकोर्ट के निर्देश पर शिक्षा सचिव ने शपथ पत्र प्रस्तुत करते हुए बताया कि सत्र 2025-26 के दौरान अभिभावकों से कुल 976 शिकायतें प्राप्त हुईं, जिनमें से केवल 167 शिकायतों का ही निपटारा किया गया, जबकि 809 मामले अब भी लंबित हैं। याचिकाकर्ता की ओर से पेश आंकड़ों में बताया गया कि दुर्ग जिले में 183 शिकायतों में से सिर्फ 1, बिलासपुर में 99 में से केवल 1, जबकि रायपुर में 199 में से 42 शिकायतों का ही निपटारा हो सका है।

हाईकोर्ट सख्त
हाईकोर्ट ने शिकायतों के निपटारे की धीमी रफ्तार पर असंतोष जताते हुए कहा कि वर्तमान स्थिति बेहद चिंताजनक है और इसमें तत्काल सुधार की आवश्यकता है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि नर्सरी और प्री-नर्सरी स्तर के बच्चों से जुड़ी समस्याओं को लंबे समय तक लंबित रखना बिल्कुल भी उचित नहीं है।
अदालत ने राज्य सरकार को निर्देश दिए कि सभी लंबित शिकायतों पर शीघ्र कार्रवाई सुनिश्चित की जाए, वहीं अगली सुनवाई में विस्तृत शपथ पत्र प्रस्तुत करने के आदेश भी दिए गए हैं।



































