BILASPUR NEWS. मिशन अस्पताल परिसर की लीज रिन्युअल की मांग को छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने फिर से खारिज करते हुए बड़ा फैसला सुनाया है। मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और जस्टिस बी.डी. गुरु की डिवीजन बेंच ने स्पष्ट किया कि लीज का नवीनीकरण कोई पक्का या स्वतः मिलने वाला अधिकार नहीं है। यह तभी संभव है, जब किरायेदार जमीन के मूल शर्तों का पूर्ण रूप से पालन करे।

याचिकाकर्ताओं ने हाईकोर्ट में तर्क दिया था कि बिलासपुर के चांटापारा स्थित प्लॉट नंबर 20 और 21 उन्हें 1959 में भूमि राजस्व संहिता की धारा 158(3) के तहत आवंटित किए गए थे और वे 1882 से धार्मिक, शैक्षणिक और धर्मार्थ कार्य कर रहे हैं। लेकिन हाईकोर्ट ने इन तर्कों को नामंजूर करते हुए कहा कि 27 वर्षों से लीज रिन्युअल ही नहीं कराया गया और इस बीच लगातार शर्तों का उल्लंघन भी हुआ है। इसीलिए न तो यह वैध कब्जा माना जा सकता है, न ही रिन्युअल पर उनका कोई दावा बनता है।

लीज शर्तों के उल्लंघन के तथ्य रिकॉर्ड में
रिकॉर्ड में यह भी सामने आया कि 16 अगस्त 2024 को बिलासपुर नजूल तहसीलदार ने अस्पताल परिसर में अवैध निर्माण हटाने और गलत गतिविधियाँ रोकने का नोटिस जारी किया था, जिसका चुनौती भी नहीं दी गई। कोर्ट ने इस तथ्य को भी गंभीर माना।
फैसले के बाद प्रशासन की कार्रवाई
हाईकोर्ट के आदेश के बाद शुक्रवार सुबह 7 बजे नगर निगम की अतिक्रमण टीम अस्पताल परिसर पहुंची और अवैध निर्माण हिस्सों पर बुलडोजर चलाकर तोड़फोड़ की। इस दौरान अतिक्रमणकारियों और निगम अधिकारियों के बीच बहस हुई, लेकिन पुलिस की मौजूदगी से स्थिति नियंत्रित रही। कार्रवाई पूरी तरह कानूनन है। अस्पताल में स्वास्थ्य सेवाएं प्रभावित नहीं होने दी जाएंगी।

स्थानीय लोगों की प्रतिक्रिया:
कुछ लोगों ने अस्पताल की ऐतिहासिक पहचान और गरीब मरीजों की सुविधा का हवाला देते हुए स्वास्थ्य सेवाएं चालू रखने की मांग की। प्रशासन ने आश्वासन दिया कि सेवा व्यवस्था बाधित नहीं होगी।

हाईकोर्ट के इस निर्णय के बाद स्पष्ट है कि बिना शर्तों के पालन और वैध नवीनीकरण के, किसी भी संस्था को सरकारी भूमि पर स्थायी कब्जे का अधिकार नहीं। अब जमीन के आगे के उपयोग का निर्णय शासन स्तर पर लिया जाएगा।




































