BILASPUR NEWS. सड़कों पर दिन-ब-दिन बढ़ते आवारा मवेशियों के खतरे पर छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को कड़ी फटकार लगाई है। अदालत ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि सरकार सिर्फ योजनाएं बना रही है, लेकिन उनका धरातल पर कोई असर नहीं दिख रहा। फाइलों में योजनाएं हैं, पर सड़कों पर मवेशी घूम रहे हैं। ये सड़कें जनता की हैं या पशुओं की? अदालत ने तल्ख़ लहजे में सवाल किया।

11 नवंबर को हुई सुनवाई में राज्य के मुख्य सचिव ने अदालत में अपना व्यक्तिगत शपथपत्र पेश किया, जिसमें बताया गया कि 24 और 25 अक्टूबर को वरिष्ठ अधिकारियों की बैठक में सड़कों से आवारा मवेशियों को हटाने के कई फैसले लिए गए। लेकिन अदालत ने कहा कि केवल बैठकें करने से कुछ नहीं होगा, जब तक नतीजे ज़मीन पर न दिखें।

मुख्य न्यायाधीश रमेश कुमार सिन्हा और जस्टिस रविंद्र कुमार अग्रवाल की खंडपीठ ने सरकार को सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का कड़ाई से पालन करने के निर्देश दिए। अदालत ने कहा कि रोज़ाना हो रहे हादसे इस बात का प्रमाण हैं कि निगरानी तंत्र पूरी तरह विफल है।
अब हर शिकायत पर तुरंत कार्रवाई
राज्य सरकार ने अदालत को बताया कि आवारा मवेशियों की शिकायत के लिए अब दो टोल-फ्री नंबर जारी किए गए हैं—
- शहरी क्षेत्रों के लिए: 1100
- राष्ट्रीय राजमार्गों के लिए: 1033
शिकायत मिलते ही संबंधित प्रशासन कार्रवाई करेगा और मवेशियों को कांजी हाउस या गौशाला भेजा जाएगा।

लापरवाही पर ठेकेदार होंगे जिम्मेदार
हाईकोर्ट ने निर्देश दिया कि हर सप्ताह कलेक्टर और संभागीय आयुक्त इस अभियान की समीक्षा करेंगे। किसी हादसे की स्थिति में टोल ठेकेदार पर जिम्मेदारी तय की जाएगी। सभी टोल अनुबंधों में यह शर्त भी जोड़ी गई है कि सड़कों को मवेशियों से मुक्त रखना उनकी प्राथमिक जिम्मेदारी होगी।

एक महीने का राज्यव्यापी अभियान
मुख्य सचिव ने बताया कि सरकार अब एक महीने का विशेष अभियान चलाएगी, जिसमें दिन-रात सड़कों से आवारा मवेशियों को हटाने की कार्रवाई होगी। अभियान की जानकारी अखबारों और सोशल मीडिया के माध्यम से आम जनता को दी जाएगी।




































