BILASPUR NEWS. अपोलो अस्पताल, बिलासपुर के चार सीनियर डॉक्टरों को हाईकोर्ट से बड़ी राहत मिली है। कोर्ट ने गोल्डी छाबड़ा की मौत के मामले में दर्ज एफआईआर और चार्जशीट को निरस्त कर दिया है। अदालत ने कहा कि मेडिकल रिपोर्ट और सबूतों से डॉक्टरों की किसी भी तरह की स्पष्ट लापरवाही साबित नहीं होती।
इस मामले में परिजनों ने डॉक्टरों पर इलाज में लापरवाही का आरोप लगाते हुए शिकायत की थी। लेकिन पुलिस ने जांच के बाद कोई कार्रवाई नहीं की। इससे परेशान परिजन हाईकोर्ट पहुंचे और याचिका दायर की। इसके बाद हाईकोर्ट के आदेश पर सरकंडा थाने में डॉ. सुनील कुमार कुडिया, डॉ. देवेंद्र सिंह, डॉ. राजीव लोचन भांजा और डॉ. मनोज कुमार राय के खिलाफ केस दर्ज किया गया था।
पुलिस की FIR को दी गई चुनौती
एफआईआर दर्ज होने के बाद चारों डॉक्टरों ने पुलिस की कार्रवाई को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर की। उनका कहना था कि 25 दिसंबर 2016 को गोल्डी छाबड़ा को गंभीर हालत में अपोलो अस्पताल में भर्ती कराया गया था। मरीज की स्थिति अत्यंत नाजुक थी और उसे मल्टीपल ऑर्गन फेल्योर की शिकायत थी। इलाज के दौरान 26 दिसंबर को उसकी मृत्यु हो गई।
मेडिकल बोर्ड ने कहा—डॉक्टरों की कोई गलती नहीं
इस मामले की जांच के लिए पहले सिम्स और बाद में राज्य स्तर पर मेडिकल बोर्ड का गठन किया गया। कार्डियोलॉजिस्ट समेत पांच विशेषज्ञों की टीम ने जांच के बाद वर्ष 2023 में अपनी रिपोर्ट दी, जिसमें स्पष्ट कहा गया कि डॉक्टरों की ओर से किसी भी प्रकार की लापरवाही नहीं हुई।
हाईकोर्ट ने कहा—लापरवाही के ठोस सबूत नहीं
मेडिको-लीगल एक्सपर्ट की रिपोर्ट के आधार पर अदालत ने कहा कि डॉक्टरों की ओर से कोई प्रत्यक्ष या प्रमाणित लापरवाही नहीं पाई गई। जब तक किसी डॉक्टर की गलती स्पष्ट रूप से साबित न हो, तब तक उसे आपराधिक मुकदमे का सामना नहीं कराया जा सकता।
अदालत ने एफआईआर और चार्जशीट दोनों को निरस्त करते हुए चारों डॉक्टरों को बड़ी राहत दी है। इस फैसले से चिकित्सा जगत में संतोष की लहर है, वहीं मृतक के परिजन आगे की कानूनी कार्रवाई पर विचार कर रहे हैं।