BHILAI NEWS. चैट जीपीटी, गूगल जेमेनाइ और डीपसिक जैसे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस टूल्स किसी और ने बनाए और हमने उनका इस्तेमाल शुरू कर दिया। एआई बेस्ड टूल्स के हम अभी भी सिर्फ यूजर्स बने हुए हैं, जबकि हमें तो इनवेंटर होना चाहिए।
ऐसा नहीं चलेगा, युवाओं को इस बारे में गंभीरता से सोचना होगा। ये बातें हेमचंद यादव विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. संजय तिवारी ने कहीं।

वे शनिवार को रूंगटा इंटरनेशनल स्किल्स यूनिवर्सिटी द्वारा आयोजित इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस शास्त्रार्थ में बतौर मुख्य अतिथि बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि, टेक्नोलॉजी इतनी आगे बढ़ चुकी है कि अब एआई प्रोटीन के आकार की भी सटीक भविष्यवाणी कर सकता है। गूगल ने इसके लिए अल्फा फोल्ड एआई तैयार कर लिया है। यह एआई बता सकता है कि प्रोटीन कैसे मुड़ेगा और उसका आकार कैसा होगा। यह जानकारी दवाइयों को बनाने, बीमारियों को समझने और जीव विज्ञान के शोध में बड़ी मदद करेगी। यह नया एआई डीएनए, आरएनए और अन्य छोटे अणुओं के मूवमेंट बताने में भी सक्षम होगा। इसका सार यह है कि अब दुनिया 50 साल आगे का सोच रही है, ऐसे में मार्केट की डिमांड के हिसाब से खुद को अपडेट करने की जरूरत है। सिलेबस भी ऐसे बनने चाहिए जो युवाओं को इस दिशा में बढ़ाए न कि सिर्फ परंपरागत शिक्षा दे।

बताया, कैसे काम करता है एआई
इसी कॉन्फ्रेंस में साउथ एशिया यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डॉ. जगदीश चंद बंसल भी शामिल हुए। उन्होंने कंप्यूटिंग और एआई में स्वार्म इंटेलिजेंस पर रोचक जानकारी देते हुए कहा कि, बहुत सारे जीव जैसे चींटियां और पक्षी एक साथ मिलकर काम करते हैं और बिना किसी एक लीडर के भी बड़ा काम कर डालते हैं। ये ऐसा है जैसे हर कोई अपनी छोटी सी जानकारी के साथ आता है और सब मिलकर एक बड़ा और अच्छा फैसला ले लेते हैं। इस सिद्धांत का इस्तेमाल हम कंप्यूटर में भी करते हैं, जैसे रोबोट को रास्ता खोजना सिखाना या मुश्किल समस्याओं को हल करना। यह दिखाता है कि कैसे छोटे-छोटे हिस्से भी मिलकर बड़ी समझदारी दिखा सकते हैं। एआई इसी सिद्धांत पर काम करता है।

एआई अभी और होगा एक्योरेट
इस इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस में शोधार्थियों को एआई की नई टेक्नोलॉजी से अवगत कराने इटली की कॉर्फोसेस यूनिवर्सिटी से आए डॉ. अगस्टिनो कॉटर्सी ने बताया कि पूरी दुनिया एआई को बेहतर बनाने में लगी हुई है। जब भी कोई एआई को कमांड देता है तब सिस्टम उसे कई तरह से देखता है। पूछे गए सवाल की मंशा को पढक़र सही उत्तर देना एआई की एक्योरेसी को दर्शाता है। अब दुनिया इस एक्योरेसी को और सटीक बनाने में जुट गई है। हर छोटी जानकारी को लेता है और उसे प्रोसेस करके जवाब परोस देता है। कॉन्फ्रेंस में कोलकाता यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डॉ. नबेंदु चाकी ने एआई में ब्लॉकचेन और ड्टीब्यूशन लेजर के बारे में बताया।

पर्सनल असिस्टेंट बन जाएगा एआई
कॉन्फ्रेंस के शुभारंभ सत्र में रूंगटा इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी के कुलाधिपति संतोष रूंगटा ने कहा कि, देश को तरक्की की ओर ले जाने में इनोवेशन का रोल सबसे अहम है। जिस तरह दुनिया के कई देश खुद को इनोवेशन के जरिए आगे बढ़ा रहे हैं, वैसे ही उम्मीद हम शोधार्थियों के लिए भारत में करते हैं। कार्यक्रम में कुलपति डॉ. जवाहर सूरीशेट्टी भी मौजूद रहे। उन्होंने शोधार्थियों को ऐसे इनोवेशन करने के लिए कहा जो सोसाइटी को फायदा पहुंचाए। रूंगटा यूनिवर्सिटी के प्रो-वीसी डॉ. मनीष मनोरिया ने एआई के इस्तेमाल और उससे मिलने वाली सहूलियतों पर चर्चा की। बताया कि, अगले कुछ साल में यह और विकसित होगा और दैनिक जीवन की छोटी-छोटी जरूरतों को भी पूरा करने मदद करने लगेगा। एआई का उपयोग सिर्फ इंर्फोशन तक सीमित नहीं रह जाएगा, बल्कि यह आपके एक पर्सनल असिस्टेंट की तर्ज पर काम करेगा।
देश-विदेश से आए 456 पेपर्स
रूंगटा ग्रुप में इस इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस शास्त्रार्थ का यह १०वां वर्ष था, जिसमें देश और विदेश से 456 रिसर्च स्कॉलर्स शामिल हुए हैं, जो दो दिनों में अपने पेपर प्रजेंट करेंगे। इससे एआई पर आधारित नई जानकारियां साझा होंगी। कॉन्फ्रेंस में रूंगटा ग्रुप के डायरेक्टर डॉ. सौरभ रूंगटा, सोनल रूंगटा, एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर डॉ. संजीव शुक्ला, डॉ. मनोज वर्गीस, डॉ. एजाजुद्दीन, डॉ वाई एम गुप्ता, डॉ. एडविन एंथोनी, डॉ. नीमा एस बालन, डीन रिसर्च एंड डेवलपमेंट डॉ. रामकृष्ण राठौर,
डॉ पद्मावती श्रीवास्तव, डॉ विजय लक्ष्मी घोष, डॉ मुकेश शर्मा सहित फैकल्टी मेंबर्स शामिल रहे।