RAIPUR NEWS. छत्तीसगढ़ में बीएडधारी सहायक शिक्षिकाओं का आंदोलन चल रहा है। नौकरी पाने लिए ये शिक्षिकाएं राजधानी के तूता में धरना दे रही हैं। इस बीच, ये शिक्षिकाएं सावित्रीबाई फुले जी की पुण्यतिथि मनाईं। इसके साथ ही उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की। धरना दे रहीं महिलाओं ने कहा कि सावित्रीबाई फुले जी भारत के पहली महिला शिक्षिका है और इन्होंने 5 सितंबर 1848 को पुणे में नौ कन्याओं के साथ देश का पहला महिलाओं के लिए विद्यालय स्थापित किया था।
एक वो दौर था, जब सावित्री बाई जी ने महिलाओं को शिक्षित बनाकर समाज में सम्मानपूर्वक जीने का मार्ग प्रशस्त किया और एक आज का दौर है, जब छत्तीसगढ़ की बीएडधारी महिला शिक्षिकाएं अपने नौकरी को वापस पाने (समायोजन) की मांग को लेकर कभी सड़कों पर दंडवत प्रणाम करती, तो कभी जल सत्याग्रह करती हैं।
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ये महिला शिक्षिकाएं अपने बच्चों और परिवार के साथ कड़कती धूप पैदल रैली निकालकर पिछले 6 महीनों से सरकार से अपने सम्मान, अपने नौकरी और अपने समायोजन की मांग कर रही है। ये देश का दुर्भाग्य है कि जिन महिलाओं को भारत में देवी की तरह पूजा जाता है, उनका सम्मान किया जाता है। आज वो महिलाएं सड़कों पर अपने सम्मान के लिए शासन से गुहार लगा रही हैं।
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बता दें कि सेवा सुरक्षा और समायोजन की मांग को लेकर बर्खास्त B.Ed सहायक शिक्षक 14 दिसंबर से अंबिकापुर से अनुनय यात्रा निकालकर रायपुर पहुंचे थे और 19 दिसंबर से नवा रायपुर के तूता धरना स्थल में प्रदर्शन कर रहे हैं। प्रदर्शनकारियों ने कहा कि अपनी मांगों की तरह सरकार का ध्यान खींचने के लिए दंडवत यात्रा निकाली जा रही है। बर्खास्त शिक्षकों की मांगों को लेकर सरकार ने कमेटी जरूर बना दी है लेकिन ये कमेटी कब तक फैसला लेगी। इसकी कोई तारीख तय नहीं की गई है।
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बता दें कि सावित्रीबाई फुले जी ने महिलाओं के अधिकारों के लिए ही नही, बल्कि उस समय समाज में व्याप्त छुआ-छूत, बाल विवाह, सती प्रथा और विधवा विवाह जैसी कुरीतियों का भी विरोध किया और इनके खिलाफ जीवन भर संघर्ष करती रहीं। शिक्षा ये एकमात्र ऐसा हथियार है, जिससे हम अपना व्यक्तिगत विकास और राष्ट्र विकास कर सकते।
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सावित्रीबाई फुले जी का जन्म 03 जनवरी 1831 को महाराष्ट्र के सतारा के नायगांव में एक किसान परिवार में हुआ था। उन्हें देश में महिला शिक्षा की अगुआ कहा जाता है। उन्होंने अपना पूरा जीवन महिला कल्याण में लगा दिया। उनकी गिनती देश की सबसे पहली आधुनिक नारीवादियों में होती है। सावित्रीबाई फुले जी टीचर होने के साथ-साथ एक समाज सुधारक, दार्शनिक और कवयित्री भी थीं, उनकी कविताएं अधिकतर प्रकृति, शिक्षा और जाति प्रथा को खत्म करने पर केंद्रित होती थीं।