BILASPUR NEWS. छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में वन विभाग से रिटायर्ड रेंजर हरिवल्लभ चतुर्वेदी ने याचिका दायर कर राज्य शासन के आदेश को चुनौती दी थी। आदेश में रिटायरमेंट के बाद गड़बड़ी के आरोप में जुर्माना लगाया था। कोर्ट ने सुनवाई करते हुए संवैधानिक पहलुओं का हवाला देते हुए शासन के आदेश को रद कर दिया है।
बता दें, कोर्ट ने अपने फैसले में लिखा है कि विभागीय अफसरों ने याचिकाकर्ता पर जुर्माना अधिरोपित करते समय मध्यप्रदेश सिविल सेवा पेंशन नियम 1976 के तहत उचित प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया है। कोर्ट ने कहा कि सरकारी कर्मचारी के सेवानिवृत्त होने के बाद केवल राज्य पाल ही विभागीय जांच के आधार पर दंडात्मक आदेश जारी कर सकते हैं।
ये है पूरा मामला
याचिकाकर्ता हरिवल्लभ चतुर्वेदी रेंजर थे। उन पर शासन की अनुमति के बगैर सड़क निर्माण का आरोप था। उनकी इस मनमानी के चलते सरकार को आर्थिक नुकसान हुआ। इस आरोप के तहत उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू हो गई। यह उनके रिटायरमेंट से पहले शुरू हुई, लेकिन सजा उनकी रिटायरमेंट के बाद दी गई। याचिकाकर्ता ने राज्य शासन के आदेश को चुनौती देते हुए कहा कि अनुशासनात्मक निकाय के पास रिटायरमेंट के बाद इस तरह का आदेश जारी करने का अधिकार नहीं है। पेंशन नियम, 1976 के नियम 9(2) ए के तहत यह अधिकार सिर्फ राज्यपाल के पास ही निहित और सुरक्षित है।
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कोर्ट ने की विशेष टिप्पणी
कोर्ट ने मामले की सुनवाई के दौरान विवादित आदेश को खारिज कर दिया और राज्य शासन को याचिकाकर्ता को दो महीने के भीतर सभी रिटायरमेंट ड्यूज का 6 फीसदी ब्याजज के साथ भुगतान करने निर्देश दिया है। इसके साथ ही कोर्ट ने टिप्पणी भी की है।
हाईकोर्ट ने संवैधानिक बाध्यताओं और प्रावधानों का उल्लेख करते हुए लिखा है कि नियम 1976 के नियम 9 (2) ए के अनुसार सेवानिवृत्ति से पहले विभागीय जांच शुरू की गई। इसलिए रिटायरमेंट के बाद भी इसे जारी रखा जा सकता है। दंड देने का अधिकार विभागीय अधिकारी के पास नहीं है। दंड का आदेश राज्यपाल द्वारा पारित किया जाना है जो राज्य में सर्वोच्च अधिकारी है। इस अनिवार्य प्रक्रिया का पालन न करने पर अनुशासनात्मक प्राधिकारी द्वारा पारित आदेश निष्फल हो जाता है।