BILASPUR. छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में नाबालिग से दुष्कर्म के आरोपी को सजा सुनाते हुए ट्रायल कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा है। मामला 16 वर्ष की नाबालिग मानसिक रोगी से दुष्कर्म व शारीरिक शोषण का है। मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा व जस्टिस रविन्द्र कुमार अग्रवाल के बेंच में हुई। कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि बच्चों के साथ यौन उत्पीड़न या यौन उत्पीड़न के किसी भी कृत्य को बहुत गंभीरता से लिया जाना चाहिए और बच्चों पर यौन उत्पीड़न के ऐसे सभी अपराधों से सख्ती से निपटा जाना चाहिए और कोई नरमी नहीं दिखाई जानी चाहिए।
बता दें, छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में चीफ जस्टिस के बेंच ट्रायल ने कोर्ट के फैसले के खिलाफ आरोपित द्वारा दायर आपराधिक अपील को खारिज कर दिया। मामला 16 अगस्त 2021 का है।
रायगढ़ जिले की निवासी पीड़िता के पिता ने शिकायत दर्ज कराई कि आरोपित आशीष सेंदरिया उर्फ भुंडू ने उसकी मानसिक रूप से कमजोर बेटी को बहला-फुसलाकर अपने घर बुलाया और उसके साथ दुष्कर्म किया।
जांच के बाद आरोपित के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 376 जे और यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण पाक्सो अधिनियम 2012 की धारा 6 के तहत जुर्म दर्ज कर जेल भेज दिया गया। हाईकोर्ट ने कई महत्वपूर्ण बिंदुओं का उल्लेख करते हुए ट्रायल कोर्ट की सजा को बरकरार रखा है।
ये भी पढ़ेंः नियम विरूद्ध किसान के जमीन पर बना दिया सड़क, हाईकोर्ट ने कलेक्टर को माना अवमानना का दोषी
पीड़िता की गवाही महत्वपूर्ण
कोर्ट ने दोहराया कि अगर पीड़िता की गवाही विश्वसनीय पायी जाती है तो केवल उसके आधार पर ही सजा दी जा सकती है। चीफ जस्टिस ने कहा कि अगर अदालत ऐसे सबूतों को विश्वसनीय और संदेह मुक्त मानती है तो उस संस्करण की पुष्टि करने पर शायद ही कोई जोर दिया जाए।
कोर्ट ने सर्वोच्च न्यायालय का हवाला दिया। उन्होंने कहा कि जब दंडात्मक प्रविधान में इससे कम नं होगा वाक्यांश का प्रयोग किया जाता है, तो न्यायालय धारा का उल्लंघन नहीं कर सकते और कम सजा नहीं दे सकते।
ये भी पढ़ेंः मॉर्निंग वॉक पर निकली असिस्टेंट प्रोफेसर चेन स्नेचिंग का हुई शिकार