BILASPUR. छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक फैसले में अपराध सिद्ध करने या अपराधी बनाए जाने के लिए अंतिम बार साथ देखे जाने को आधार नहीं मानने की बात कहीं है। हाईकोर्ट में सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा व जस्टिस रजनी दुबे ने फैसले में कहा कि सिर्फ आखिरी बार साथ देखे जाने के आधार पर किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है। इसके लिए साध्य और तथ्य भी होना जरूरी है। कोर्ट ने अपराध साबित करने के लिए परिस्थितिजन्य साक्ष्य की पूरी श्रृंखला को रेखांकित किया।
बता दें, जगदलपुर निवासी कृष्णा झली को अपनी पत्नी कविता नेताम की हत्या के लिए ट्रायल कोर्ट ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। 8 अप्रैल 2020 को कविता लापता हो गई थी। उसका आधा जला हुआ शरीर 12 अप्रैल 2020 को जगदलपुर के पास एक जंगल में पाया गया था। अभियोजन पक्ष ने आरोप लगाया कि कविता के पति कृष्णा झली उसकी मृत्यु के जिम्मेदार थे।
इसके लिए आखिरी बार साथ देखे जाने के सिद्धांत को मुख्य साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किया। बस्तर के सत्र न्यायालय ने झली को भारतीय दंड संहिता की धारा 302 और 201 के तहत दोषी ठहराया था और उसे आजीवन कारावास और तीन साल कठोर कारावास की सजा सुनाई थी। दोषी ने सजा के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की। इसमें कई महत्वपूर्ण कानूनी मुद्दे उठाए गए।
इसमें से मुख्य रूप से आखिरी बार साथ देखे जाने के सिद्धांत की विश्वसनीयता पर ध्यान केन्द्रित किया गया। बचाप पक्ष ने तर्क दिया कि इस सिद्धांत पर निर्भरता त्रुटिपूर्ण थी क्योंकि अन्य महत्वपूर्ण साक्ष्यों से यह साबित नहीं हो रहा था। बचाव पक्ष ने गवाहों के बयानों में विसंगतियों और अपराध से झली को जोड़ने वाले प्रत्यक्ष साक्ष्य की कमी का भी उल्लेख किया।
गवाही पर आधारित केस
हाईकोर्ट और परिस्थितिजन्य साक्ष्य और आखिरी बार साथ देखे जाने के सिद्धांत के आपास के कानूनी सिद्धांतों की बारीकी से जांच की। अदालत ने नोट किया कि अभियोजन पक्ष का मामला मुख्य रूप से कौशल्या नाथ की गवाही पर आधारित था। उन्होंने दावा किया था कि उन्होंने मृतक और आरोपी को घटना के दिन एक साथ देखा था हालांकि उनका बयान काफी दिन बाद आया गया। इसकी विश्वसनीयता पर भी सवाल उठे।
हाईकोर्ट ने दोहराएं सुप्रीम कोर्ट के तय किय गए बिंदुओं को
-अपराध साबित करने के लिए अंतिम बार साथ देखे जाने के निष्कर्ष पूरी तरह से स्थापित होने चाहिए। इसे किसी अन्य परिकल्पा पर समझाया नहीं जा सकता।
-साक्ष्य की एक पूरी श्रृंखला होनी चाहिए जो आरोपी को पूरी तरह दोषी सिद्ध करे और निर्दोषता के निष्कर्ष के लिए कोई उचित आधार न छोड़े।
-आखिरीबार साथ देखे जाने का सिद्धांत अकेले दोषसिद्धि का आधार नहीं बन सकता जब तक कि इसे अन्य साक्ष्यों द्वारा समर्थित न किया जाए, जो किसी अन्य व्यक्ति के अपराधी होने की संभावना को समाप्त कर दे।