BHILAI. अगर आप भी लंबे समय से ऐसी किसी बीमारी से पीड़ित हैं, जिसका इलाज नहीं है तो आपके लिए खुशखबरी है। अमेरिका की कंपनी ने भिलाई में अपना क्लिनिकल ट्रायल सेंटर खोल दिया है। यह सेंटर किसी निजी अस्पताल में खोला गया छत्तीसगढ़ सहित पूरे मध्य भारत का पहला और इकलौता सेंटर है। अमेरिकी कंपनी द्वारा भिलाई के स्पर्श हॉस्पिटल में खोले गए इस सेंटर में लाइलाज बीमारियों का इलाज बिल्कुल मुफ्त होगा।
अब आपको बता दें कि क्लिनिकल ट्रायल होता क्या है? स्पर्श हॉस्पिटल के प्रबंध निदेशक डॉ. दीपक वर्मा के अनुसार क्लिनिकल ट्रायल में किसी ऐसी बीमारी की दवा का परीक्षण किया जाता है जिसकी दवा उपलब्ध नहीं है। या फिर कोई और बेहतर दवा तैयार की जा रही है। क्लिनिकल ट्रायल के मुख्य रूप से तीन चरण होते हैं। पहले चरण में दवा की दवा के दुष्प्रभाव, सुरक्षा और मात्रा का परीक्षण किया जाता है। पहले चरण में सीमित लोगों तक ही इसका परीक्षण होता है। इसमें 100 से कम लोगों को ही शामिल किया जाता है। अधिकतर मामलों में संख्या 20 से शुरू होती है।
क्लिनिकल ट्रायल के दूसरे चरण में दवा या उपकरण (खासतौर पर ऐसे उपकरण जो शरीर के भीतर लगाए जाते हैं।) की कारगरता का परीक्षण किया जाता है। यानी यह पता करना होता है कि जिस दवा का परीक्षण किया जा रहा है, वह कारगर है भी या नहीं। इसके साथ ही इसके अल्पकालिक दुष्प्रभावों का भी जांच की जाती है।
तीसरे चरण में वही दवा पहुंचती है जो न तो दो चरणों की जांच में नुकसानदेह हो और उसके सकारात्मक परिणाम भी आ रहे हों। तीसरे चरण का उद्देश्य यह होता है कि नई दवा आखिर कितनी कारगर है। क्या दवा शत-प्रतिशत कारगर है या फिर कुछ कम। तीन चरण के ट्रायल के बाद ही किसी कंपनी को दवा बनाने की मंजूरी मिलती है। दवा बनाने की मंजूरी मिलने के बाद भी दवा का परीक्षण जारी रहती है, उसे चौथे चरण का ट्रायल कहते हैं।
स्पर्श के क्लिनिकल ट्रायल सेंटर का फायदा
भिलाई के स्पर्श मल्टीस्पेशलिटी हॉस्पिटल में खुले क्लिनिकल ट्रायल सेंटर का फायदा ये है कि यहाँ तीसरे चरण का ट्रायल होगा। यानी यहाँ जिन बीमारियों की दवा मिलेगी वो सुरक्षित और कारगर साबित हो चुकी होगी। इन दवाओं को अमरीकी ड्रग रेगुलेशन अथॉरिटी और भारतीय रेगुलेटरी पहले ही परख चुकी है। हर किसी को ट्रायल में शामिल होने का मौका नहीं मिलेगा। इसके लिए अस्पताल तय मानकों पर आपकी जांच करेगा। अस्पताल बताएगा कि किस बीमारी की दवा आई है, उसी बीमारी से पीड़ित व्यक्ति इसमें शामिल हो सकेंगे।
कैसे बना स्पर्श हॉस्पिटल क्लिनिकल ट्रायल सेंटर
स्पर्श हॉस्पिटल में क्लिनिकल ट्रायल सेंटर खुलने के पीछे की कहानी भी कम रोचक नहीं है। दरअसल कुछ समय पहले अमेरिका के स्वास्थ्य विभाग के एक बड़े अफसर का किसी कारण से स्पर्श हॉस्पिटल आना हुआ। यहाँ की व्यवस्थाओं और स्वास्थ्य मानकों का गंभीरता से पालन होता देख उन्होंने प्रबंधन से क्लिनिकल ट्रायल सेंटर खोलने का सुझाव दिया और अमेरिका की एजेंसी से बात की। अमरीकी रेगुलेटरी अफेयर्स एंड क्वालिटी एस्योरेंस एजेंसी के डॉ. मुकेश कुमार ने बताया कि स्पर्श हॉस्पिटल को क्लिनिकल ट्रायल सेंटर बनाने का फैसला करने से पहले विभिन्न मापदंडों पर परखा गया। इसके बाद अमेरिकी रेगुलेटरी अफेयर्स एंव क्लालिटी एस्योरेंस एजेंसी ने यहाँ सेंटर खोल दिया।
गंजेपन से परेशान लोग तुरंत करें स्पर्श हॉस्पिटल संपर्क
अगर आप गंजेपन से परेशान हैं और अब तक ली गई कोई भी दवा ने असर नहीं दिखाया है तो आपको स्पर्श हॉस्पिटल संपर्क करना चाहिए। अमेरिकी कंपनी की गंजापन दूर करने वाले दवा का तीसरे चरण का ट्रायल यहाँ शुरू हो रहा है। डॉ. मुकेश कुमार ने बताया कि क्लिनिकल ट्रायल की शुरुआत एंड्रोजेनिक एलोपेशिया यानी गंजेपन की बीमारी से होगी। यहाँ गंजेपन का शिकार लोग नई दवा को आजमा सकते हैं। इसके बाद सिकलिंग, डायलिसिल वाले मरीज, कैंसर, मल्टीऑर्गन फेलुअर के मरीजों को भी क्लिनिकल ट्रायल का लाभ मिलेगा।
ट्राइल में शामिल होने वाले मरीजों का फायदा
स्पर्श हॉस्पिटल की क्लिनिकल ट्रायल टीम के प्रमुख डॉ. संजय गोयल ने बताया कि क्लिनिकल ट्रायल ऐसे मरीजों के लिए मुफ्त ट्रीटमेंट का विकल्प है जो परंपरागत ट्रीटमेंट से ठीक नहीं हो रहे। नए ट्रीटमेंट फ्री में उपलब्ध होंगे। ट्रायल अस्पताल में आने वाले सामान्य मरीजों पर नहीं होगा। बल्कि ट्रायल के उद्देश्य से आने वालों को ही इसका लाभ मिलेगा। जैसे गंजेपन के इलाज के लिए आने वाली दवा में सिर्फ गंजेपन के शिकार लोगों को ही शामिल किया जाएगा। क्लिनिकल ट्रायल की रजामंदी देने वाले मरीजों को सभी तरह की सुविधाएं मिलेंगी। उन्हें इन दवाओं के लिए कोई भुगतान नहीं करना होगा। दूर-दराज से सेंटर आने वाले मरीजों के ठहरने और भोजन जैसी बुनियादी जरूरतों का इंतजाम हॉस्पिटल करेगा। क्लिनिकल ट्रायल का हिस्सा बनने वाले मरीजों से उनकी रजामंदी लेने फार्म भराया जाएगा। बता दें कि मरीजों पर ट्रायल होने वाली यह दवाइयां पहले ही सुरक्षित घोषित हो चुकी है। इस ट्रायल के जरिए सिर्फ उनकी प्रभावशीलता परखी जाएगी।