BILASPUR. हाईकोर्ट के बाद अब सुप्रिम कोर्ट से भी सेंट्रल यूनिवर्सिटी के दैनिक वेतन कर्मचारियों को राहत मिली है। नियमित करने के मामले में सुप्रिम कोर्ट ने सेंट्रल यूनिवर्सिटी के सभी एसएलपी खारिज कर दी हैं। सुप्रिम कोर्ट की डिवीजन बेंच ने सुनवाई करते हुई कहा कि हमें उच्च न्यायालय के निर्देश में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं दिखता। सुप्रिम कोर्ट में जस्टिस ऋषिकेश रायॅ, औअर जस्टिस प्रशांत मिश्रा ने सुनवाई की।
बता दें, सेट्रल यूनिवर्सिटी में कार्यरत दैनिक वेतन कर्मचारियों ने नियमित करने की लड़ाई पिछले 11 साल से लड़ी। इसमें उन्हें सुप्रिम कोर्ट से भी सफलता मिल गई है। हाईकोर्ट के बाद सुप्रिम कोर्ट में भी फैसला उनके पक्ष में आया है। अब सेंट्रल यूनिवर्सिटी के 98 कर्मचारियों को नियमित कर्मचारी के तौर पर लाभ मिलेगा।
कर्मचारियों को सुनवाई का अवसर दिए बिना ही उन्हें कलेक्टर दर पर वेतनमान देने का आदेश जारी किया गया। इसे साथ ही 10 फरवरी 2010 को तत्कालीन रजिस्ट्रार ने 22 सितंबर 2008 को जारी शासन के नियमितीकरण को भी निरस्त कर दिया। रजिस्ट्रार के इस आदेश को चुनौती देते हुए कर्मचारियों ने अधिवक्ता दीपाली पांडेय के माध्यम से हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी।
इसमें बताया कि गुरुघासीदास विश्वविद्यालय को राज्य सरकार से केन्द्रीय विश्वविद्यालय के रूप में स्वीकार किया गया है। राज्य शासन के अधीन कार्यरत सभी कर्मचारियों को उसी स्थिति में केन्द्रीय विश्वविद्यालय में शामिल करना चाहिए। लेकिन विश्वविद्यालय के अधिकारियों ने ऐसा नहीं किया।
यूनिवर्सिटी ने दाखिल किया था एसएलपी
सेंट्रल यूनिवर्सिटी में कई वर्षों से कार्यरत दैनिक वेतन कर्मचारियों को राज्य शासन उच्च शिक्षा विभाग विगत 22 अगस्त 2008 को जारी आदेश के अनुसार तत्कालीन कुलपति प्रोफेसर एलएम मालवीय ने 26 अगस्त 2008 को नियमितीकरण के आदेश जारी कर दिए थे। इससे पूर्व विश्वविद्यालय कार्य परिषद की 22 जुलाई 2008 को हुई बैठक में भी कर्मचारियों को नियमित करने का प्रस्ताव पारित किया गया।
इस कार्रवाई से पहले ही राज्य शासन 5 सर्कुलर जारी कर चूका था। इस बीच 15 जनवरी 2009 को यह विश्वविद्यालय केन्द्रीय विश्वविद्यालय बन गया। इसके साथ ही यहां केन्द्रीय एक्ट भी लागू हो गया। यह भी शर्त लागू हई कि जैसे कर्मचारी लाए गए हैं उसे वैसे ही रखे जाएंगे। सेवा शर्तों को बिना राष्ट्रपति की अनुमति के बदला नहीं जाएगा। लेकिन इसका पालन नहीं किया गया।