BILASPUR. तिब्बत के सांसद तेनजिन चुनजी शहर पहुंचे। जहां पर उन्होंने पत्रकारों से प्रेस क्लब में चर्चा करते हुए भारत व तिब्बत के रिश्तों को विस्तार से बताया। उन्होंने भारत को अपनी सबसे बड़ी ताकत बताया साथ ही यह भी कहा कि भारत से ही हमें तिब्बत की आजादी की उम्मीद है। उन्होंने कहा कि चीन तिब्बत को खत्म करना चाहता है। भारत ही हमारी ताकत है और वहीं हमारे लिए कुछ कर सकता है।
दुनिया भर में निर्वासन में रह रहे तिब्बतियों द्वारा लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई 17 वीं निर्वासित तिब्बती संसद के सदस्य होने के साथ ही निर्वासित जीवन जी रहे है और तिब्बत के भीतर रह रहे 60 लाख से अधिक तिब्बतियों के प्रतिनिधि के तौर पर हम सरकार के सामने चीनी कम्युनिस्ट शासन द्वारा तिब्बती लोगों के समक्ष आने वाले सबसे महत्वपूर्ण मुद्दों को लाना चाहते हैं। हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला से आए निर्वासित सांसद तेनजिन चुनजी और नगाबा गैंगरी ने पत्रकारों से चर्चा करते हुए अपना दर्द बयां किया। इस दौरान उनके साथ भारत तिब्बत सहयोग मंच के प्रदेश अध्यक्ष कैलाश गुप्ता और प्रदेश महामंत्री शुभम शेंडे भी मौजूद रहे।
उन्होंने कहा कि पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (पीआरसी) द्वारा 1949 में तिब्बत पर आक्रमण करने के बाद से तिब्बती लोगों के मूलभूत मानवाधिकारों का व्यवस्थित रूप से उल्लंघन हो रहा है। ये तिब्बती लोग अपनी विशिष्ट सांस्कृतिक और राष्ट्रीय पहचान पर उपस्थित खतरे से आहत हैं। तिब्बत में स्थिति पिछले सात दशकों में बद से बदतर होती गई है। स्थिति इस कदर खराब हो रही है कि तिब्बत अब अपने सांस्कृतिक संहार और पहचान के पूर्ण विनाश के खतरे का सामना कर रहा है।
तिब्बत स्वतंत्र राष्ट्र था
उन्होंने कहा कि ऐतिहासिक रूप से देखा जाए तो तिब्बत शुरू से स्वतंत्र राष्ट्र था, जिसका एक परिभाषित क्षेत्र, विशिष्ट आबादी और सरकार हुआ करती थीं। अतीत में उसने अपने पड़ोसी देशों के साथ राजनयिक संबंध भी बना रखे थे। चीन द्वारा 1959 में अवैध कब्जे से पहले के करीब दो हजार से अधिक वर्षों तक तिब्बत भौगोलिक दृष्टि से दो एशियाई दिग्गजों- भारत और चीन के बीच बफर राज्य के रूप में अस्तित्व में रहा।
तिब्बत और भारत के बीच मैत्रीपूर्ण सह-अस्तित्व और सांस्कृतिक आदान-प्रदान का हजारों सालों का इतिहास रहा है। तिब्बत और भारत समृद्ध, प्राचीन और समकालीन सभ्यताओं वाले पड़ोसी देश रहे हैं।
तिब्बती लोगों का उत्पीड़न जारी
चीन द्वारा तिब्बत पर कब्जे के बाद से भारत और चीन के बीच सीमा अस्तित्व में न केवल आ गई है, बल्कि वह विवाद का विषय भी बनी हुई है। इन सीमाओं के पीछे हमारे तिब्बती भाई-बहन हैं। इन पर चीन का आधिपत्य कायम है और चीनी दमनकारी नीतियों के तहत तिब्बती लोगों का उत्पीड़न जारी है।
यह लगातार तीसरा वर्ष है, जब फ्रीडम हाउस की विश्व स्वतंत्रता सूचकांक रिपोर्ट-2023 में फिर से तिब्बत को दुनिया में सबसे कम स्वतंत्र देश के रूप में स्थान दिया गया है।