BILASPUR.हाईकोर्ट में परिवार न्यायालय के एक मामले को चुनौदी देते हुए याचिका दायर की गई। जिसकी सुनवाई जस्टिस पीपी साहू के सिंगल बेंच में हुई। सुनवाई में कोर्ट ने कहा कि पति की नपुंसकता पत्नी के अलग रहने के लिए पर्याप्त कारण होगा और ऐसे परिदृश्य में वह सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण-पोषण की हकदार भी होगी। कोर्ट ने परिवार न्यायालय के फैसले को सही ठहराते हुए याचिकाकर्ता पति की याचिका को खारिज कर दिया है। परिवार न्यायालय ने पत्नी के वैवाहिक विच्छेद की अनुमति देने के साथ ही पत्नी को भरण पोषण के रूप में 14 हजार रूपये भुगतान करने का निर्देश दिया था।
बता दें, परिवार न्यायालय के फैसले को चुनौती देते हुए पति ने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के तहत छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में याचिका दायर कर चुनौती दी थी। मामले की सुनवाई होईकोर्ट में हुई। जस्टिस ने याचिकाकर्ता पति द्वारा दायर आपराधिक पुनरीक्षण याचिका को खारिज कर दिया है। पत्नी ने परिवार न्यायालय में वाद दायर कर अपनी व्यथा सुनाई थी। इसमें कहा था कि वह अपने वैवाहिक अधिकारों से वंचित हो रही है, क्योंकि शादी के बाद पति ने उसके साथ शारीरिक संबंध स्थापित नहीं किए थे।
पति ने भी रखा था अपना पक्ष
परिवार न्यायालय मंे सुनवाई के दौरान पति ने अपना पक्ष रखते हुए जवाब पेश किया था। इसमें कहा था कि विवाह से पहले ही उसने अपनी शारीरिक अक्षमता की बात अपनी होने वाली पत्नी को बता दिया था। इस पर उसकी तरफ से कोई आपत्ति नहीं आयी थी। उसकी सहमति के आधार पर ही विवाह की तिथि तय की गई और शादी सम्पन्न हुई थी।
वैवाहिक अधिकार से वंचित रखना क्रूरता
मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि दोनों पक्षों के लिए वैवाहिक अधिकार विवाह की नींव है और उनमें से किसी एक द्वारा इससे वंचित रखना दूसरे साथी के साथ क्रूरता होगी। पति ने अपनी अक्षमता स्वीकार कर ली है लिहाजा पत्नी के अलग रहने के लिए पर्याप्त कारण है और इसलिए वह भरण पोषण के लिए पूरी तरह से पात्र है।