BILASPUR. छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में यूजीसी के माध्यम से 2006 में जारी सर्कुलर के आधार पर उच्च शिक्षा विभाग के कर्मचारियों के सेवानिवृत्ति 62 के जगह पर 60 करने पर याचिका दायर की गई। इसमें हाईकोर्ट ने सुनवाई करते हुए बड़ा फैसला सुनाया है। हाईकोर्ट में सुनवाई करते हुए जस्टिस दीपक कुमार तिवारी के बेंच ने कहा कि राज्य सरकार शिक्षा से संबंधित काननू बनाने के लिए स्वतंत्र है और यूजीसी के बनाए गए विनियमों को स्वीकार करने और पालन करने के लिए बाध्य नहीं है। याचिका को खारिज कर दिया।
बता दें, हाईकोर्ट में तीन सहायक ग्रंथपाल ने याचिका दायर की। जिसमें उन्होंने सेवानिवृत्ति का उम्र 62 होने की बात कहते हुए 60 वर्ष में सेवानिवृत्ति देने के विरोध में याचिका दायर की।
उन्होंने याचिका में बताया कि यूजीसी ने वर्ष 2006 में जारी सर्कुलर के अनुसार वे उच्च शिक्षा विभाग के कर्मचारी थे और उनकी सेवानिवृत्ति शिक्षकीय-गैर शिक्षकीय कर्मचारियों की तरह 62 वर्ष की आयु पूरी करने के बाद होनी थी, लेकिन कालेज के प्राचार्य ने 12 नवंबर 2010 को आदेश जारी किया।
इसके तहत याचिकाकर्ताओं को 60 वर्ष की आयु पूरी करने की तारीख 30 जून 2011 को रिटायर किया जाना था। इसके खिलाफ वर्ष 2011 में ही याचिका लगाई गई थी।
शिक्षक कर्मचारी के समकक्ष नहीं माना जा सकता
हाईकोर्ट ने सुनवाई करते हुए याचिका को खारिज कर दिया। साथ ही आदेश में कहा है कि अर्ध वार्षिकी की आयु का लाभ प्राप्त करने के लिए सहायक ग्रंथपाल को शिक्षक-कर्मचारी के समकक्ष नहीं माना जा सकता।
अजय शर्मा सहित अन्य की नियुक्ति वर्ष 1978 में सहायक ग्रंथपाल राजनांदगांव में हुई थी। उनकी सेवा शर्तें मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ सेवा एवं भर्ती नियम 1990 के अंतर्गत थी।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले का दिया हवाला
राज्य सरकार की तरफ से बताया गया कि याचिकाकर्ताओं को वर्ग-3 मिनिस्ट्रियल संवर्ग में माना गया। इस नियम के तहत ही 60 वर्ष की आयु पूरी करने पर सेवानिवृत्ति दी गई।
कोर्ट ने केरल राज्य के मामले में सुप्रीम कोर्ट के दिए गए निर्णय का हवाला देते हुए कहा कि राज्य सरकार शिक्षा से संबंधित कानून बनाने के लिए स्वतंत्र है। यूजीसी के बनाए गए विनियमों को स्वीकार करने और पालन करने के लिए बाध्य नहीं है।