JANJGIR. दिव्यांगों को बेसहारा कहने वालों को जिले के 10 दिव्यांगों ने अपनी मेहनत के बल पर करारा जवाब दिया है. बस उन्हें दिशा और कुछ मदद दी गई, जिसके बल पर उन्होंने मशरूम उत्पादन के जरिए अपनी आय का जबरदस्त प्रबंध कर लिया है. मशरूम बिक्री के लिए तैयार है और वे प्रतिमाह 8 लाख 55 हजार का मशरूम बेचेंगे. इससे उन्हें इतनी कमाई होगी कि न सिर्फ अपना खर्च चला सकेंगे, बल्कि अपने परिवार को भी उन्नति की राह पर ले जा सकेंगे.
आपको बता दें कि जिले के ग्राम पेण्ड्री के गौठान में ग्रामीण औद्योगिक पार्क के माध्यम से विभिन्न आजीविका गतिविधियों की शुरुआत हो गई है. यहां जय मां दुर्गा स्व-सहायता समूह के रूप में 12 ऐसी महिलाएं और पुरुष भी हैं, जिनमें से 10 सदस्य शारीरिक रूप से दिव्यांग हैं. समूह की अध्यक्ष तिरुपति कश्यप बचपन से दोनों पैरों से दिव्यांग है और कैलिपर्स की मदद से चलती है. सचिव रनिया कश्यप एक पैर से दिव्यांग है. अन्य सदस्य श्यामकली कश्यप, उर्मिला कश्यप, आनंद राम, जय प्रकाश, गीता कश्यप, कृष्ण कुमार, रामकृष्ण, बिंदु बाई हैं, जिनमें से कुछ सदस्य पैर से तो कुछ आंख या अन्य रूप से दिव्यांग हैं. दो सदस्यों को सहयोगी के तौर पर शामिल किया गया है. इन्हें रीपा कार्यक्रम के तहत जोड़ा गया.
ये सभी अब गौठान में और मशरूम की खेती अपनाकर दिन-रात मेहनत कर रहे हैं. जिला प्रशासन ने उन्हें मशरूम के व्यवसाय से जोड़ा और शेड बनाकर देने के साथ उत्पादन बढ़ाने आर्थिक सहयोग किया. बाकी उन्होंने अपनी सूझबूझ और मेहनत के बल पर काम शुरू किया और अब वे मशरूम को न सिर्फ तैयार कर लिया है, बल्कि बिक्री के लिए भी तैयार हो चुका है. उनका कहना है कि इससे सबसे पहले तो शासन से मिले कर्ज को चुकाएंगे और फिर बाकी पैसों से अपने घर को तरक्की की राह पर आगे ले जाएंगे.
इस तरह हुआ उत्पादन
अध्यक्ष तिरुमति ने यह भी बताया कि दो कमरों में लगभग 19 सौ बैग मशरूम लगाया गया है. बाजार में लगभग 150 रुपये किलो में बेचना तय किया गया है. एक बैग से एक माह में 3 किलो मशरूम का उत्पादन होता है. इस तरह सभी बैग की बिक्री प्रतिमाह होने पर आठ लाख 55 हजार की बिक्री होगी, इसके बाद फिर अगले माह के लिए बैग तैयार हो जाएंगे. उन्होंने बताया कि प्रतिदिन सुबह 9 बजे से शाम 5 बजे तक वे गोठान परिसर में आकर अपने कामकाज में व्यस्त हो जाती हैं.
परिजनों के सहारे थे, अब बने उनके संबल
समूह की अधिकांश महिलाएं और पुरुष भी पहले घरवालों की मदद से अपना गुजारा कर रहे थे. दिव्यांग होने के चलते वे कोई मुश्किल वाला काम नहीं कर सकते थे. लेकिन, जिस तरह से उन्होंने मशरूम उत्पादन किया है, इससे अब वे ही अपने घर के लोगों का संबल बन गए हैं. सभी की उम्मीदें उन्हीं पर टिकी है.