NEW DELHI. फिलीपींस और मोरक्को अपने एक यूनिक आईडी नंबर यानी एक तरीके से आधार सिस्टम को अपनाने जा रहे हैं। इसके लिए वे भारत से मदद भी मांग रहे हैं। दोनों ही अपने यहां भारतीय आधार सिस्टम के ओपन-सोर्स टेक्नोलॉजी आर्किटेक्चर को लागू करने जा रहे हैं। इसके अलावा आठ से दस देश भी अपने यहां इसे लागू करने की योजना पर काम कर रहे हैं। इसमें नेपाल, सिंगापुर, ब्राजील, मेक्सिको, वियतनाम, केन्या और श्रीलंका देश भी शामिल हैं।
बताते चलें कि भारत में आधार कार्ड सिस्टम की शुरुआत UPA-I की सरकार के दौरान हुई थी। यह 12 अंकों का आधार सिस्टम भारत में डिजिटलीकरण और सरकारी सेवाओं का लाभ पहुंचाने के साथ-साथ लोगों की पहचान का आधार भी है।
एक विश्वसनीय डिजिटल पहचान प्रणाली
एक डिजिटल पहचान के रूप में आधार कार्ड सिस्टम सरकारों, नागरिकों और व्यवसायों को यह विश्वास दिलाता है कि जिस व्यक्ति के साथ वे लेन-देन कर रहे हैं, वे वास्तव में सही हैं. आधार एक व्यक्ति के बारे में बुनियादी जानकारी एकत्र करता है। इसमें बायोमेट्रिक, व्यक्ति का पूरा पता और प्रत्येक उपयोगकर्ता के लिए एक विशिष्ट आईडी का उपयोग किया जाता है।
आधार की परिकल्पना साल 2009 में की गई थी। तब यह अनुमान लगाया गया था कि भारत में लगभग 40 करोड़ लोगों के पास व्यक्तिगत पहचान दस्तावेज नहीं थे। वहीं, उस वक्त केवल 17 फीसदी आबादी के पास ही बैंक खाते थे। उस समय लगभग 50 अरब अमेरिकी डॉलर सब्सिडी पर खर्च किए जा रहे थे। मगर, भी सही लाभार्थियों तक यह राशि नहीं पहुंच रही थी।
ऐसे में भारत को एक विशिष्ट पहचान देने के लिए एक सुरक्षित, विश्वसनीय तरीके की तलाश थी, जिसे आधार ने पूरा किया। 1.2 अरब से अधिक आबादी वाले देश में बहुसंख्य नागरिकों के पास यह साबित करने के लिए कोई दस्तावेज नहीं था कि वे कौन हैं और उनका आधार क्या हैं, जिससे उन्हें सही समझा जाए।
भारत सरकार ने अपनी महत्वाकांक्षी विशिष्ट पहचान परियोजना को धरातल पर उतारने के लिए 100 करोड़ रुपये का फंड निर्धारित किया। बारह साल बाद, आधार ने भारत के 94.2% से अधिक आबादी के लिए पहचान का दस्तावेजीकरण कर दिया है। यह उपयोगकर्ता को सुरक्षित, डिजिटल पहचान प्रदान करता है, जिसके खो जाने या उसके नकली होने का डर नहीं है। अब करोड़ों लोगों के लिए आधार संख्या ही उनकी पहली पहचान बन गई है।