INDORE NEWS. जहरीली कफ सिरप बनाने वाली दवा फैक्ट्री का मामला दो साल से दबा हुआ था। फैक्ट्री से तैयार हुआ यह कफ सिरप उसी समय जांच में फेल हो गया था, लेकिन अधिकारियों ने कार्रवाई करने के बजाय पूरा मामला रफा-दफा कर दिया। अब छिंदवाड़ा में इसी रसायन वाले कफ सिरप से बच्चों की मौत के बाद यह मामला फिर से सुर्खियों में है। जिन अफसरों ने जांच दबाई थी, वे छुट्टी लेकर लापता हो गए हैं।
साल 2023 में अफ्रीकी देश कैमरून में बच्चों की खांसी की दवा नेचर कोल्ड पीने से 66 बच्चों की मौत हुई थी। इसकी जांच के दौरान पता चला कि यह दवा इंदौर की रीमन लैब्स में बनती है। जांच टीम ने यहां से सैंपल लिए जिन्हें भोपाल की ड्रग लैब में परीक्षण के लिए भेजा गया। रिपोर्ट में सैंपल फेल हो गया।
निर्माता ने चुनौती दी, तो सैंपल कोलकाता की सेंट्रल ड्रग लैब भेजे गए। वहां की रिपोर्ट में भी दवा में जानलेवा रसायन डाईइथाइल ग्लाइकोल (DEG) की मात्रा 26 प्रतिशत से अधिक पाई गई। जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मानक के अनुसार अधिकतम सीमा 0.10 प्रतिशत है।
ठंडे बस्ते में डाल दिया केस
ऐसे मामलों में नियमानुसार एफआईआर और कोर्ट में परिवाद दायर किया जाना चाहिए था। मगर, इंदौर के खाद्य एवं औषधि प्रशासन के अधिकारियों ने रिपोर्ट को ठंडे बस्ते में डाल दिया। इसके बाद जून 2025 में शिकायत भोपाल पहुंची, तब 30 जुलाई को प्रदेश औषधि नियंत्रक ने इंदौर के वरिष्ठ औषधि नियंत्रक राजेश जीनवाल को कंपनी के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने का लिखित आदेश दिया था।
इसके बावजूद कार्रवाई नहीं हुई। सूत्रों के अनुसार, जांच में देरी जानबूझकर की गई, ताकि दवा निर्माता कंपनी को फायदा मिले। जैसे-जैसे समय बीतता है, सैंपल एक्सपायर होकर नष्ट हो जाते हैं, जिससे अदालत में साक्ष्य कमजोर पड़ते हैं। इस वजह से पूरी प्रक्रिया भ्रष्टाचार की जकड़ में आने के बाद दोषी बच जाते हैं।
छुट्टी पर चले गए औषधि नियंत्रक
इंदौर के वरिष्ठ औषधि नियंत्रक राजेश जीनवाल की भूमिका पर सवाल उठने के बाद वे छुट्टी पर चले गए हैं। इसके साथ ही वह मीडिया से बात करने से बच रहे हैं। उनकी जगह संभाल रही प्रभारी अधिकारी अनामिका सिंह ने बताया कि मुझे आज ही चार्ज मिला है। पुरानी फाइल अब संज्ञान में आई है। अब नियमानुसार कानूनी कार्रवाई की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है।