BHILAI NEWS. पितृ पक्ष के अवसर पर श्रीमद भागवत महापुराण की कथा में वृंदावनधाम से आए कथा वाचक डॉ.श्याम सुंदर पाराशर ने छठवें दिन श्रीकृष्ण के महारास लीला की कथा का वर्णन कर लोगों को आनंदित कर दिया। इस दौरान श्रद्धालु कथा सुनकर भाव-विभोर हो गए।
बता दें, भिलाई के सेक्टर-2 स्थित हनुमान मंदिर में श्रीमद् भागवत महापुराण की कथा का आयोजन किया गया है। कथा के छठवें दिन कथावाचक डॉ.श्याम सुंदर पाराशर ने कई कथाओं का वर्णन किया। उन्होंने कथा में अपराध व क्षमा पर विस्तार से कथा सुनाते हुए कहा कि अधिकारी जितना बड़ा होता है उसका किया हुआ अपराध भी उतना ही बड़ा होता है, जैसी यदि किसी ग्राम का प्रधान भ्रष्ट होगा, तो वह अपने गांव का ही नुकसान करेगा। परंतु यदि विधायक भ्रष्ट होगा तो वह ज्यादा हानी करेगा । यदि प्रधान मंत्री ही भ्रष्ट होगा तो पूरा देश ही अंधकारमय हो जाएगा।
इस प्रकार भागवत में भगवान का अपराध ब्रह्मा जी ने भी किया और इंद्र ने भी किया पर भगवान ने इंद्र को तो क्षमा मांगने पर क्षमा किया। पर ब्रह्मा जी की लंबी चौड़ी स्तुति करने पर भी उनसे बात तक नहीं की तात्पर्य है कि इंद्र के सामने ब्रह्मा जी का पद बहुत बड़ा होता है ब्रह्मा जी के एक दिन में 14 इंद्र आकर चले जाते हैं इतना बड़ा ब्रह्मा जी का एक दिन होता है इसलिए भगवान ने ब्रह्मा जी को क्षमा नहीं किया।
आगे कथा में भगवान की अत्यंत ही अतरंग लीला महारास का वर्णन करते हुए कहा कि यह लीला साधारण मनुष्यों की बुद्धि से परे की लीला है इसलिए शुकदेव जी ने इस लीला का वर्णन प्रारंभ करते हुए कहा यह सर्वसाधारण मनुष्य की लीला नहीं है साक्षात भगवान की लीला है जिन गोपियों का भगवान ने चीर चुराया उन्हीं को रास का अधिकार प्रदान किया। जीवात्मा और परमात्मा के मिलन को ही महारास कहा गया है। जीवात्मा रूपी गोपियों का परमात्मा रूपी कृष्ण से मिलन को ही रास कहा गया है।
रास में जितनी भी गोपियां सम्मिलित हुई वह कोई साधारण गोपियां नहीं है वर्णन है दंडकारण्य के सभी संत मिथिलापुर की नारियां यज्ञ सीता में सभी तपस्या करके भगवान को गले लगाने के लिए गोपियों का रूप धारण करके बृज में प्रकट हुए हैं और उन सभी का मनोरथ पूर्ण करने के लिए भगवान ने महारास रचाया है ।
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भगवान ने बृज लीला पूर्ण कर मथुरा में कंस का वध कर मथुरा वासियों को कंस के अत्याचार से मुक्त किया अपने माता-पिता देवकी वासुदेव को बंधन से मुक्त किया और उज्जैन में संदीपनी मुनि के गुरुकुल में जाकर अध्ययन किया। हमारे भारतवर्ष में गुरुकुल परंपरा का बहुत महत्व था क्योंकि एक राजा का बेटा गुरुकुल में पढ़ता था और एक गरीब ब्राह्मण का बेटा भी और सभी बालक गुरुकुल में हर तरह की शिक्षा नि:शुल्क प्राप्त करते थे अध्ययन पूर्ण होने पर अपने सामर्थ्य से गुरु दक्षिणा देते थे पर विद्यार्थियों ने विदेशी आक्रांताओं ने सबसे पहले हमारी गुरुकुल परंपरा को ही नष्ट किया और हमें विदेशी भाषाओं का दास बना दिया कथा विश्राम में रुक्मणी जी का विवाह भगवान द्वारिका नाथ से संपन्न हुआ।