BILASPUR. छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने विवाह विच्छेद मामले में दायर याचिका की सुनवाई की। मामले की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने टिप्पणी की उन्होंने कहा कि पति-पत्नी का संबंध पारस्परिक विश्वास पर निर्भर करता है। मामले की सुनवाई जस्टिस संजय एस अग्रवाल व जस्टिस गौतम भादुड़ी के बेंच में हुई। उन्होंने फैसला सुनाते हुए कहा कि यदि घर में अत्यधिक विवाद होता है जिसमें पति-पत्नी किसी एक द्वारा जानबूझकर किए गए कृत्य के कारण दंपत्ती अपने बच्चे को खो देते हैं। ऐसी स्थिति में सामंजस्य व सुधार का विकल्प खत्म हो जाता है। कोर्ट ने याचिकाकर्ता भिलाई स्टील प्लांट के कर्मचारी के अपील को स्वीकार कर तलाक लेने की अनुमति दी।
बता दें, छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में विवाह विच्छेद मामले में याचिका दायर की थी। याचिकाकर्ता भिलाई स्टील प्लांट में कार्यरत है और प्रति महीने एक लाख 20 हजार रुपये वेतन प्राप्त करता है। कोर्ट ने पत्नी को गुजारा भत्ता के रूप में हर महीने 25 हजार रुपये देने कहा। साथ ही उसकी अपील को स्वीकार करते हुए विवाह विच्छेद को मंजूरी दी।
मामला घरेलू विवाद से शुरू हुआ था। इसमें पत्नी ने अपनी बच्ची की हत्या कर खुद आत्महत्या की कोशिश की थी। तब महिला का बयान लिया गया। बयान में उसने पति द्वारा दहेज की मांग कर प्रताड़ित करने का आरोप लगाया था। पूर्व में हाईकोर्ट ने महिला को बरी करने के साथ ही पति को भी दोषी नहीं माना था। पति ने परिवार न्यायालय में विवाह विच्छेद की अनुमति के संबंध में याचिका दायरक की थी। परिवार न्यायालय ने उसकी याचिका को रद कर दिया था। इसके खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की थी।
पति की अपील के बाद पत्नी ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर वैवाहिक संबंध स्थापित करने का हवाला देते हुए पति की अपील को खारिज करने की मांग की थी। इस पर पति ने पत्नी के पूर्व बयान का हवाला दिया। इस पर भी कोर्ट ने टिप्पणी की है कि यदि कोई व्यक्ति जिसने मृत्यु पूर्व बयान दिया है, अगर वह स्वस्थ्य हो जाता है तो ऐसी स्थिति में साक्ष्य अधिनियम की धारा 32 के तहत बयान को मृत्यु पूर्व बयान के रूप में नहीं माना जा सकता है, लेकिन इसे गवाह के पूर्व बयान के रूप में माना जा सकता है।
पढ़ें क्या है पूरा मामला
भिलाई नगर निवासी व स्टील प्लांट में कार्यरत निलेश कुमार अपने परिवार न्यायलय के फैसले को चुनौती देते हुए छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। याचिका के अनुसार 9 जनवरी 1997 को दोनों ने शादी कर ली और उनके विवाह से 10 दिसंबर 1997 को एक बच्ची का जन्म हुआ। जिसका नाम नैनी था। पत्नी का आरोप है कि बच्चे के जन्म के बाद पति का व्यवहार प्रतिकूल हो गया और वह पैसे की मांग करने लगा। पत्नी के पिता की पहले ही मृत्यु हो गई थी। इसएिल उसकी मांग उसकी मां पूरी कर रही थी।
पति ने कहा कि पत्नी बदले में पैसे की मांग करती थी। ससुराल वालों के साथ-साथ उसके साथ भी दुर्व्यव्हार करती थी। पत्नी ने उसके खिलाफ दहेज की मांग को लेकर धारा 498 ए के तहत रिपोर्ट दर्ज कराई थी। इसलिए उनके बीच मतभेद होने लगे। याचिकाकर्ता निलेश ने अपनी याचिका में कहा कि 31 मई 2020 को ज बवह अपने कार्यालय से वापस आया तो उसकी बेटी नैनी मृत पड़ी थी और पत्नी भी खून से लथपथ बेहोशी की हालत में थी। पड़ोसियों और परिवार के सदस्यों की मदद से पत्नी को सेक्टर-9 के भिलाई अस्पताल में आईसीयू में भर्ती कराया गया।
पत्नी जब होश में आयी तो कार्यकारी मजिस्ट्रेट दुर्ग ने 31 मई 2002 की शाम को 7.45 बजे मृत्यु पूर्व बयान दर्ज किया। इसके बाद उन पर बेटी की हत्या और आत्महत्या के लिए आईपीसी की धारा 302 व धारा 309 के तहत जुर्म दर्ज किया गया। उसने बताया कि वह लंबे समय से मानसिक रूप से परेशान थी और घटना 11 से 11.30 बजे के बीच की। उसने अपनी बेटी का गला घोंट दिया और उसके बाद उसने एसिड पीकर आत्महत्या करने के लिए खुद को चाकू से मार दिलया। घटना के समय वह और उसकी बेटी घर पर थे और पति ड्यूटी पर गया था। पति से अक्सर घरेलू विवाद होता रहता था। जिससे वह तंग आ चुकी थी। इसलिए वह आत्महत्या करना चाहती थी।