BILASPUR. छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहे तीन अभियुक्तों की अपील पर सुनवाई हुई। सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस रमेश कुमार सिन्हा व जस्टिस रविन्द्र अग्रवाल के बेंच ने कहा कि संशय खुद सबूत का स्थान नहीं ले सकता, टेलीफोन काल केवल संशय पैदा करता है। कोर्ट ने कहा कि इलेक्ट्रानिक साक्ष्य के आधार पर किसी के खिलाफ आरोप तय नहीं किया जा सकता। इस तरह का संशय सबूत के लिए पर्याप्त नहीं माना जा सकता।
बता दें, रायपुर में 2019 में हुई हत्या के एक मामले में आरोपित की अपील को स्वीकार करते हुए निचली अदालत के फैसले को रद्द किया। अपीलार्थियों को सशर्त रिहाई आदेश जारी कर दिया है।
कोर्ट ने अपने विस्तृत आदेश में सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला भी दिया है। कोर्ट ने कहा है कि अनुमान या संदेह चाहे कितना भी गंभीर क्यो न हो। प्रबल संदेह, प्रबल संयोग और गंभीर संदेह कानूनी प्रमाण स्थान नहीं ले सकते।
अभियुक्तों को दोषी ठहराने के लिए बहुत मजबूत संदेह और अत्यधिक संदिग्ध कारकों के अस्तित्व का हवाला देकर अभियोजन की जिम्मेदारी का निर्वहन नहीं किया जा सकता है। न ही बचाव की मिथ्यता उस सबूत की जगह ले सकती है।
जिसे सफल होने के लिए अभियोजन पक्ष को स्थापित करना होता है। भले ही एक झूठी याचिका हो। बचाव को सर्वोत्तम स्थिति में एक अतिरिक्त परिस्थिति के रूप में माना जाना चाहिए। यदि अन्य परिस्थितियां निश्चित रूप से अपराध की ओर इशारा करती है।
निचले अदालत के फैसले को चुनौती
लवकुश शुक्ला ग्राम बर्री डाकघर बारीडीह बरसेठी जिला जौनपुर निवासी व वामसी शर्मा पत्नी स्वर्गीय के विश्वनाथ शर्मा बम्लेश्वरी नगर रायपुर ने निचली अदालत के फैसले को चुनौती देते हुए अपने अधिवक्ताओं के माध्यम से अलग-अलग अपील पेश की थी।
दोनों याचिकाओं की हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच में एकसाथ सुनवाई हुई। निचली अदालत ने धारा-120 बी और 302 आईपीसी के तहत अभियुक्तों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।