ATUL MALAVIYA. आइए, इज़रायल और अरब समस्या की जड़ में चलते हैं। जानते हैं कि जेरुसलम और उसके आसपास का क्षेत्र यहूदियों, मुसलमानों और ईसाइयों के लिए कितना मायने रखता है।
1. अपनी मातृभूमि जेरूसलम से बलपूर्वक निर्वासित यहूदियों द्वारा हज़ारों वर्षों से प्रतिदिन गाई जाने वाली प्रार्थना:
हे ईश्वर! तू ही बता, और कब तक तेरी आराधना हम अपनी जान से भी प्यारी मातृभूमि से दूर अजनबी स्थानों में करते रहें| ओ प्यारे जेरूसलम, अगर तुझे एक क्षण भी भुला दूँ तो मेरा दाहिना हाथ बायें हाथ को भूल जाए| यदि किसी दिन भी तेरा नाम उच्चारण न करने का पाप करूँ तो मेरी जीभ हमेशा के लिए तालू से चिपक जाए| हे जेरूसलम, मैं कभी ऐसा अपराध न करूँ कि अपने समस्त सुखों के ऊपर तेरा ध्यान न रखूँ|
2. ईसा मसीह माउंट ऑफ़ ओलिव की चोटी से जेरूसलम को निहारते हुए:
हे पवित्र जेरूसलम, मैं इस पर्वत चोटी पर खड़े होकर तेरे दर्शन करता हूँ| जब जब इस पृथ्वी पर ईश्वर के बंदों पर संकट आयेगा, तू उन्हें इसी तरह शरण देगा जैसे एक मुर्गी उसके पंखों को फैलाकर अपने चूजों को उनमें सुरक्षित रूप से छुपा लेती है|
3. हदीथ में उद्धृत पैगम्बर मुहम्मद का कथन:
ओ जेरूसलम! तू ही वह जगह है जिसे अल्लाह ने सब स्थानों से ऊपर प्राथमिकता दी है| तेरे अंदर ही खुदा के चुनिंदा सेवक निवास करते हैं| जेरूसलम ही वह जगह है जहाँ से पृथ्वी ने आकार लेना प्रारंभ कर अपना विस्तार पाया और यही वह जगह हैं जहाँ एक दिन पृथ्वी पुनः सिकुड़कर समाप्त हो जायेगी| जेरूसलम शहर के ऊपर जो ओस की बूँदें गिरती हैं वे समस्त बीमारियों से छुटकारा दिला देती हैं क्योंकि वे सीधे जन्नत के बागीचे से टपकती हैं|
ईसा से लगभग एक हजार साल पहले अब्राहम के निर्देश पर डेविड ने अपने पुत्र सोलोमन को भव्य मंदिर निर्माण का आदेश दिया| ईस्वी सन 70 तक ये मंदिर शान से खड़ा हुआ था| रोम का सम्राट था टाईटस, जिसका अपना साम्राज्य खतरे में था, जनता विद्रोह पर उतारू थी। प्रजा का ध्यान भटकाने के लिए उसने “मजहब” का कार्ड खेला। ईसा मसीह को खुदा के बेटे के रूप में महिमामंडित करने का अभियान चला दिया। वह प्रचारित करने लगा कि ईसा मसीह का कत्ल यहूदियों ने किया था।
उसी वर्ष रोमन सम्राट टाइटस ने जेरूसलम पर कब्जा करते हुए असंख्य यहूदियों का क्रूरतापूर्वक कत्लेआम करते हुए सोलोमन के मंदिर को तोड़ डाला| इसके परकोटे पर स्थित सातों दरवाजों की चाबियाँ मंदिर के यहूदी पुजारियों (रब्बी) ने आसमान की तरफ उछाल कर फेंक दीं और कहा – हे स्वर्ग में बैठे ईश्वर, संभालो ये चाबियाँ| हम पराजित होकर जेरूसलम की रक्षा करने में असमर्थ रहे| अब ये चाबियाँ तुम अपने पास ही रखना और जेरूसलम की रक्षा करना|समय आने पर हमें ये चाबियाँ तुम्हीं वापिस करोगे|
अपनी ज़मीन से निर्वासित यहूदी जो पूरी दुनिया में फ़ैल गए थे, यहाँ तक कि भारत में भी, अपने अपने स्थानों पर हर साल उनके सबसे बड़े त्यौहार एवं नव वर्ष “रौश हाश्नाह” का पहले जश्न मनाते थे फिर वाइन भरे गिलासों को एक दूसरे से टकराते हुए चियर्स बोलने की बजाये आँखों में आँसूं भरे हुए भर्राते गले से बोलकर गिलास तोड़ देते थे – अलशाना हब्बाह” अर्थात भगवान् ने चाहा तो अगले वर्ष हम ये गिलास जेरूसलम में टकरा कर जश्न मना रहे होंगे|
पूरी दुनिया में कोई भी यहूदी अपने और परिवार के रहने के लिए पहले तो भव्य मकान का निर्माण करता था और फिर निर्ममता से उसका एक कौना ऐसा तोड़ देता था कि आलीशान मकान भद्दा लगने लग जाये| कारण – हम इस टूटे हुए कोने को देखकर एक क्षण के लिए भी न भुला सकें कि डेविड के शहर जेरूसलम में सोलोमन का जो मंदिर हज़ारों वर्ष पूर्व तोड़ दिया गया था, आज भी भग्नावस्था में खड़ा है और जब तक उस मंदिर का भव्य पुनर्निर्माण नहीं हो जाता, हमारा घर भी टूटा हुआ भद्दा लगना चाहिए|
लगभग 1900 वर्ष पश्चात:
द्वितीय विश्वयुद्ध समाप्त हो चुका था। हिटलर की नाज़ी सेनाओं ने यूरोप में बसे और शांति की मिसाल साठ लाख यहूदियों को ऐसी निर्ममता से कत्ल किया जिसमें जुल्म की हर पराकाष्ठा पार कर जाए। इतिहास में इस नरसंहार को होलोकास्ट कहकर पुकारा जाता है।
14 मई 1948 की चिलचिलाती गर्मी की दोपहर को इतिहास का एक नया अध्याय लिखा जा रहा था – “ग्रेट ब्रिटेन” ने दुनिया के तमाम देशों की तरह फिलिस्तीन को भी स्वतन्त्रता प्रदान कर दी| उनकी सेनायें आज जेरूसलम के बाहर निकलकर सांकेतिक कूच कर रही हैं| ये वही जेरूसलम है जहाँ से बेबीलोनियंस, असीरियंस, रोमन, पर्शियन, अरब और तुर्क लोग समय समय पर कब्जा करते रहे और तबतक आते जाते रहे जब तक ब्रिटेन ने इसपर कब्जा न कर लिया| अब अंग्रेजों के बाहर जाने की बारी है| बाहर की एक छोटी सी बस्ती में थोड़ी सी संख्या में रह रहे हैं बढ़ती हुई उम्र के कुछ यहूदी रब्बी (पुजारी) सदियों से ये पीढ़ी दर पीढ़ी उन्हीं नियमों का पालन करते आये हैं जो बाइबिल (ओल्ड टेस्टामेंट) में बताये गए हैं, हर सप्ताह सब्बाथ परम्परागत तरीके से मनाते हैं, तोराह की आयतें याद करते रहते हैं|
वृद्ध रब्बी मोर्ड़ेचाई खिडकी से देख रहे हैं कि ब्रिटिश सेना की आख़िरी टुकड़ी जेरूसलम के एक दरवाजे ज़िओन गेट से बाहर आ रही है और अचानक उनके आवास के सामने आकर रुक जाती है| ब्रिटिश सेना का मेजर उनके सामने आता है और उन्हें लोहे की लगभग एक फुट लंबी चाबी आगे बढ़ाकर कहता है – अब ब्रिटिश सेना जेरूसलम से विदा लेती है, हमारे आपसी संबंध अच्छे या बुरे जैसे भी रहे हों, हमें हँसी खुशी एक दूसरे से विदा लेनी चाहिए| ये ज़िओन दरवाजे की चाबी है, इसे अब आप संभालिए|
बूढ़े पुजारी को यकीन नहीं हो रहा, उसके पैर और हाथ दोनों कांप रहे हैं, आँखों से अश्रुधारा अविरल बह रही है, बड़ी मुश्किल से शब्द फूटते है – खुश रहो बेटा, थरथराते हाथों में चाबी पकड़कर उसे ऊपर उठाकर आसमान की तरफ देखते हुए चिल्लाता है – हे ईश्वर, तू महान है जिसने हमें ये दिन दिखाने के लिए जीवित रखा, इसमें कोई संदेह नहीं मुझे कि ये चाबी तूने ही स्वर्ग से भेजी है, मैं इसे दुनिया के समस्त यहूदियों की ओर से तेरी नियामत समझकर स्वीकार करता हूँ|ब्रिटिश मेजर वृद्ध पुजारी को सेल्यूट करता है और मुड़कर बाहर निकल जाता है|
1948 में अंग्रेजों ने तो जेरूसलम को आज़ाद कर दिया परन्तु न सिर्फ जेरुसलेम बल्कि उस ओर जाने वाला पहाड़ी रास्ता भी अरब मुस्लिमों के कब्जे में है| अब इस पवित्र शहर पर अपना आधिपत्य जमाने के लिए एक ऐसी लड़ाई प्रारम्भ होने वाली है जो बीस साल बाद एक बड़े युद्ध में परिवर्तित होगी और आगे कई दशकों के लिए पूरी दुनिया में कांटे की तरह चुभती रहेगी|
मेरा आशय मित्रों के समक्ष इतिहास के इस अत्यंत महत्वपूर्ण प्रसंग के सही रूप को सामने लाना है| समय मिलते ही प्रसंग को आगे बढ़ाने के लिए आपके समक्ष उपस्थित होता हूँ|
(यह लेखक के निजी विचार हैं)