BHILAI NEWS. रूंगटा इंटरनेशनल स्किल्स यूनिवर्सिटी के डिपार्टमेंट ऑफ फॉरेंसिक साइंस में सोमवार को छात्रों के लिए क्राइम सीन इन्वेस्टिगेशन पर विशेष हैंड्स-ऑन ट्रेनिंग आयोजित की गई। इस दौरान यूनिवर्सिटी कैंपस में एक वास्तविक परिस्थितियों जैसा डमी क्राइम सीन तैयार किया गया, जहां छात्रों ने फॉरेंसिक तकनीकों के जरिए एक मर्डर मिस्ट्री को सुलझाने की प्रक्रिया को करीब से समझा।
सीन ऑफ क्राइम यूनिट दुर्ग के सीनियर साइंटिफिक ऑफिसर डॉ. मोहन पटेल ने छात्रों को बताया कि किसी हत्या के मामले में अपराध स्थल सबसे अहम गवाह होता है। उन्होंने कहा कि खून के छींटे, टूटा हुआ सामान, शव की स्थिति और आसपास मौजूद हर वस्तु अपराध की कहानी बयां करती है। फॉरेंसिक टीम सबसे पहले यह पता लगाने की कोशिश करती है कि हत्या कब, कैसे और किस दिशा से की गई।

ब्लड स्पैटर से खुलती है वारदात की परतें
प्रशिक्षण सत्र में बताया गया कि ब्लड स्पैटर पैटर्न एनालिसिस से यह जाना जा सकता है कि हमला खड़े होकर हुआ या बैठकर, हथियार किस प्रकार का था और कितनी बार वार किए गए। खून के दीवार तक पहुंचने से आरोपी और पीड़ित के बीच की दूरी का भी अनुमान लगाया जाता है।
विशेषज्ञों ने कहा कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट के जरिए मौत के कारण, समय और हमले के तरीके का खुलासा होता है। शरीर का तापमान, चोटों के निशान और शव की कठोरता से आरोपी की संभावित टाइमलाइन तैयार की जाती है।

फिंगरप्रिंट और डीएनए से पकड़ा जाता है झूठ
डॉ. पटेल ने बताया कि कई बार हत्या को हादसा या आत्महत्या दिखाने की कोशिश की जाती है, लेकिन फॉरेंसिक साइंस ऐसे झूठ को बेनकाब कर देती है। फांसी के मामलों में गर्दन के निशान और जहर से हत्या में विसरा जांच सच्चाई सामने लाती है।
कार्यक्रम में फिंगरप्रिंट और डीएनए जांच की अहमियत पर भी प्रकाश डाला गया। बताया गया कि अपराधी चाहे कितना भी सतर्क हो, वह बाल, खून, पसीना या त्वचा के कण जैसे कोई न कोई सबूत जरूर छोड़ जाता है। डीएनए मिलान को कोर्ट में सबसे मजबूत वैज्ञानिक साक्ष्य माना जाता है।

नए आपराधिक कानूनों की जानकारी
कार्यक्रम में ‘क्राइम सीन टू कोर्ट’ विषय पर पं. किशोरीलाल शुक्ल विधि महाविद्यालय, राजनांदगांव की प्राचार्य डॉ. मिनिशा मिश्रा ने छात्रों को नए आपराधिक कानूनों के तहत फॉरेंसिक साइंस की भूमिका समझाई। उन्होंने बीएनएस, बीएनएसएस और बीएसए जैसे नए कानूनों के माध्यम से न्याय प्रणाली को अधिक तकनीक आधारित और पीड़ित केंद्रित बनाने पर जोर दिया। डिजिटल साक्ष्य, ई-एफआईआर, घटनास्थल की अनिवार्य वीडियोग्राफी और वैज्ञानिक जांच प्रक्रिया से पारदर्शिता बढ़ने की बात कही। साथ ही संगठित अपराध, आतंकवाद और मॉब लिंचिंग जैसे नए परिभाषित अपराधों की भी जानकारी दी।

डिजिटल सबूतों की बढ़ती भूमिका
विशेषज्ञों ने बताया कि आज के दौर में मोबाइल फोन, कॉल डिटेल, लोकेशन, सीसीटीवी फुटेज और सोशल मीडिया चैट मर्डर केस की जांच में अहम कड़ी बन चुके हैं।
छात्रों ने इस सत्र को बेहद रोमांचक और ज्ञानवर्धक बताया। उनका कहना था कि फिल्मों में दिखाई जाने वाली जांच और वास्तविक फॉरेंसिक जांच में बड़ा अंतर होता है।
कार्यक्रम में स्कूल ऑफ लाइफ साइंस की डायरेक्टर डॉ. नीमा एस. बालन सहित फॉरेंसिक साइंस विभाग की एचओडी निशा पटेल भी उपस्थित रही।
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