BILASPUR NEWS. बिलासपुर नगर निगम में वर्षों से चली आ रही प्रशासनिक असमंजस और नीतिगत लापरवाही का खामियाजा भुगत रहे 22 कर्मचारियों को आखिरकार हाईकोर्ट से न्याय मिला है। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने निगम कमिश्नर के आदेश को रद्द करते हुए इन कर्मचारियों की अनुकंपा नियुक्ति बहाल कर दी और स्पष्ट कर दिया कि नीति की आड़ में कर्मचारियों को अधर में नहीं रखा जा सकता।

हाईकोर्ट ने पाया कि ये कर्मचारी 2018 से लगातार निगम में सेवा दे रहे थे, लेकिन उन्हें न तो उनके पद के अनुरूप वेतन मिला और न ही स्थायी स्थिति। हैरानी की बात यह रही कि उपमुख्यमंत्री द्वारा स्वयं नियुक्ति आदेश सौंपे जाने के बावजूद, कर्मचारियों को वर्षों तक केवल प्लेसमेंट कर्मचारी मानकर काम कराया गया।

स्वीकृति के नाम पर उलझा मामला
नगर निगम प्रशासन ने नियुक्ति को शासन की स्वीकृति से जोड़ते हुए पहले वेतन रोका और बाद में नियुक्ति निरस्त कर दी। हाईकोर्ट ने इसे प्रशासनिक गैर-जिम्मेदारी करार देते हुए कहा कि यदि नियुक्ति आदेश जारी किया गया, तो उसकी जिम्मेदारी भी प्रशासन की ही है।
नीति से छेड़छाड़ नहीं कर सकता प्रशासन
जस्टिस नरेंद्र कुमार व्यास की एकलपीठ ने स्पष्ट किया कि अनुकंपा नियुक्ति पर राज्य सरकार की तय नीति ही लागू होगी। न तो अधिकारी अपने स्तर पर नीति को बदल सकते हैं और न ही बिना कारण अनुमोदन रोक सकते हैं। अदालत ने टिप्पणी की कि कारण बताए बिना नियुक्ति निरस्त करना मनमानी और निरंकुशता है।

अधूरी नौकरी की पीड़ा
अदालत के समक्ष यह तथ्य भी सामने आया कि अनुकंपा नियुक्ति सामान्यतः परिवार की आर्थिक संकट की स्थिति में दी जाती है, लेकिन इन कर्मचारियों को 7 वर्षों तक न पूरी नौकरी मिली, न पूरा वेतन, जिससे अनुकंपा नियुक्ति का मूल उद्देश्य ही प्रभावित हुआ।
राहत मिली, लेकिन सवाल बाकी
हालांकि हाईकोर्ट ने नियुक्ति बहाल करते हुए वरिष्ठता नियुक्ति तिथि से देने के निर्देश दिए हैं, लेकिन पिछले वेतन का लाभ नहीं दिया गया। इसके साथ ही यह सवाल भी खुला रह गया है कि क्या निगम प्रशासन इस फैसले के खिलाफ अपील करेगा या कर्मचारियों को पूरा अधिकार देगा।

हाईकोर्ट का यह फैसला केवल 22 कर्मचारियों की बहाली भर नहीं है, बल्कि यह प्रशासनिक फैसलों में पारदर्शिता, जिम्मेदारी और संवेदनशीलता की सख्त याद दिलाने वाला आदेश माना जा रहा है।



































