DHAMTARI NEWS.धमतरी जिले के कुरूद ब्लॉक के ग्राम नारी में पदस्थ एक शिक्षक को स्कूल की हकीकत बताना महंगा पड़ गया। राज्योत्सव के जश्न के बीच शिक्षा व्यवस्था की पोल खोलने वाले शिक्षक को जिला शिक्षा अधिकारी ने तत्काल निलंबित कर दिया है, लेकिन सच तो यही है कि स्कूल में बच्चों के पास अब तक हिंदी की किताबें तक नहीं पहुँची हैं। स्कूल शिक्षा विभाग की लापरवाही और सिस्टम की हकीकत को बेनकाब करना शिक्षक को महंगा पड़ गया है।

धमतरी जिले के कुरूद ब्लॉक के ग्राम नारी की सरकारी नई प्राथमिक शाला में किताबों की भारी कमी से बच्चे जूझ रहे हैं। कक्षा चौथी में कुल 21 बच्चे दर्ज हैं — इनमें से 11 बालक और 10 बालिकाएँ हैं लेकिन हिंदी विषय की एक भी नई किताब स्कूल को शिक्षा विभाग की ओर से अब तक नहीं मिली है। बच्चे पुरानी किताबों के सहारे पढ़ने को मजबूर हैं। महज़ 8 पुरानी किताबें हैं, जिनसे तीन-तीन बच्चे मिलकर पढ़ते है, कई बच्चे बिना किताब के घर लौट जाते हैं। पढ़ाई के दौरान किताब को लेकर झगड़े की नौबत तक आ जाती है, ऐसे हालात में जब शिक्षक ने सच्चाई को अपने व्हाट्सऐप स्टेटस पर लगाया, तो विभाग ने उसे अनुशासनहीनता मानते हुए तत्काल निलंबित कर दिया।

शिक्षक ढालूराम साहू ने लिखा था, बच्चों की शिक्षा व्यवस्था ठप्प और हम चले राज्योत्सव मनाने, क्या हम राज्योत्सव मनाने लायक हैं? हमारे जनप्रतिनिधियों को ये सब नहीं दिखता..जहाँ खाने-पीने को मिले, वहीं पर काम करते हैं। जब तक बच्चों को पूरी पुस्तक नहीं मिल जाता, सहायक शिक्षक से लेकर कलेक्टर और शिक्षा मंत्री तक का वेतन रोक देना चाहिए।”

बस, यही स्टेटस जिला शिक्षा अधिकारी अभय कुमार जायसवाल को नागवार गुजरा। उन्होंने तत्काल प्रभाव से शिक्षक ढालूराम साहू को निलंबित करने का आदेश जारी कर दिया… आदेश में लिखा है कि शिक्षक का यह कृत्य छत्तीसगढ़ सिविल सेवा आचरण नियम 1965 के प्रतिकूल है।

हालाकि जिला शिक्षा अधिकारी ने दावा किया कि स्कूल में पुस्तकें वितरित हो चुकी हैं, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही कह रही हैं। बच्चे खुद बता रहे हैं कि अब तक हिंदी की नई किताबें नहीं मिली हैं। एक तरफ राज्य सरकार राज्योत्सव के नाम पर करोड़ों रुपये खर्च कर रही है। वहीं दूसरी ओर गाँव के स्कूलों में बच्चे बिना किताबों के पढ़ने को मजबूर हैं…और जब कोई शिक्षक इस सच्चाई को सामने लाता है, तो सिस्टम उसे सस्पेंड कर देता है अब बड़ा सवाल ये —क्या सच बोलना सिविल सेवा आचरण के खिलाफ है या फिर सिस्टम की कमियों को छिपाना? क्या शिक्षा विभाग के ये कृत्य बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ नहीं है?




































