RAIPUR NEWS. 22 सितंबर से शारदीय नवरात्रि की शुरुआत हो रही है। छत्तीसगढ़ के बस्तर की अराध्य देवी मां दंतेश्वरी, डोंगरगढ़ की मां बम्लेश्वरी, बिलासपुर की मां महामाया मंदिर, रायपुर का महामाया मंदिर, चंद्रहासिनी मंदिर समेत कई मंदिरों में तैयारियां जोरों पर हैं। छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध सिद्ध पीठ डोंगरगढ़ में भीड़ के दौरान भगदड़ से बचने और चलने के लिए जिगजैग की व्यवस्था की गई है। शक्तिपीठों में मनोकामना ज्योत जलाने विदेशी भक्तों ने भी बुकिंग की है। इस बार भी कई माता-मंदिरों में घी के दीपक नहीं जलेंगे।
डोंगरगढ़-मां बम्लेश्वरी देवी
डोंगरगढ़ की पहाड़ी पर स्थित मां बम्लेश्वरी देवी का विख्यात मंदिर आस्था का केंद्र है। बड़ी बम्लेश्वरी के समतल पर स्थित मंदिर छोटी बम्लेश्वरी के नाम से प्रसिद्ध है। बम्लेश्वरी शक्ति पीठ का इतिहास करीब 2000 वर्ष पुराना है। इसे वैभवशाली कामाख्या नगरी के रूप में जाना जाता था। मां बम्लेश्वरी को मध्य प्रदेश के उज्जयिनी के प्रतापी राजा विक्रमादित्य की कुलदेवी भी कहा जाता है। इतिहासकारों ने इस क्षेत्र को कल्चुरी काल का पाया है। मंदिर की अधिष्ठात्री देवी मां बगलामुखी हैं। उन्हें मां दुर्गा का स्वरूप माना जाता है। उन्हें यहां मां बम्लेश्वरी के रूप में पूजा जाता है।
रतनपुर- मां महामाया
बिलासपुर जिले के रतनपुर स्थित महामाया मंदिर महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती को समर्पित है। ये 52 शक्ति पीठों में से एक है। देवी महामाया को कोसलेश्वरी के रूप में भी जाना जाता है, जो पुराने दक्षिण कोसल क्षेत्र की अधिष्ठात्री देवी हैं।
दंतेवाड़ा- मां दंतेश्वरी माता
देश के 52 शक्ति पीठों में से एक दंतेश्वरी मंदिर है। मान्यता है कि यहां देवी का दांत गिरा था। 14वीं शताब्दी में बना यह मंदिर दंतेवाड़ा में स्थित है। मां की मूर्ति काले पत्थर से तराश कर बनाई गई है। मंदिर को चार भागों में विभाजित किया गया है। गर्भगृह और महा मंडप का निर्माण पत्थर के टुकड़ों से किया गया था। मंदिर के प्रवेश द्वार के सामने एक गरुड़ स्तंभ है। मंदिर खुद एक विशाल प्रांगण में स्थित है जो विशाल दीवारों से घिरा हुआ है। शिखर को मूर्तिकला से सजाया गया है।
रायपुर- मां महामाया मंदिर
1400 साल पहले महामाया मंदिर का निर्माण हैहयवंशी राजाओं ने करवाया था। महामाया मंदिर का गर्भगृह और गुंबद का निर्माण श्रीयंत्र के रूप में हुआ है। मंदिर में मां महालक्ष्मी, मां महामाया और मां समलेश्वरी तीनों की पूजा आराधना एक साथ की जाती है। महामाया मंदिर प्रशासन के मुताबिक इस बार नवरात्रि के एक दिन पहले यानी 21 सितंबर रात 9 बजे तक ज्योत प्रज्वलन का राशि ली जाएगी।
अंबिकापुर- महामाया अंबिका
देवी अंबिकापुर का नाम ही महामाया अंबिका देवी के नाम पर है। किवदंती है कि महामाया का सिर रतनपुर और धड़ अम्बिकापुर में है। माता की प्रतिमा छिन्न मस्तिका है। महामाया के बगल में विंध्यवासिनी विराजीं हैं। विंध्यवासिनी की प्राण प्रतिष्ठा विंध्याचल से लाकर की गई है। शारदीय नवरात्र में छिन्न मस्तिका महामाया के शीश का निर्माण राजपरिवार के कुम्हार हर साल करते हैं। जिस प्रतिमा को मां महामाया के नाम से लोग पूजते हैं।
सक्ती-मां चंद्रहासिनी
सक्ती जिले के चंद्रपुर की छोटी सी पहाड़ी के ऊपर विराजित है मां चंद्रहासिनी। मान्यता है कि देवी सती का अधोदन्त (दाढ़) चंद्रपुर में गिरा था। यह मां दुर्गा के 52 शक्ति पीठों में से एक है। यहां बनी पौराणिक और धार्मिक कथाओं की झाकियां, करीब 100 फीट विशालकाय महादेव पार्वती की मूर्ति आदि आने वाले श्रद्धालुओं का मन मोह लेती है।
कोरबा-मां सर्वमंगला देवी
कोरबा के सर्वमंगला देवी मंदिर को कोरेश के जमींदार परिवार ने बनवाया था। त्रिलोकी नाथ मंदिर, काली मंदिर और ज्योति कलश भवन से घिरा हुआ है। वहां भी एक गुफा है, जो नदी के नीचे जाती है और दूसरी तरफ निकलती है।
धमतरी-मां अंगार मोती माता
धमतरी जिले के गंगरेल में 52 गांव डूबने के बाद मां अंगार मोती माता की स्थापना की गई थी। माता के चरण पादुका मंदिर में अभी भी विराजित है। ये 52 गांव गंगरेल बांध बनने से पहले टापू पर स्थित थे। बांध बनने के बाद, इन गांवों के लोगों ने मां अंगारमोती को बांध के किनारे लाकर स्थापित किया, और वे उन्हें अपनी अधिष्ठात्री देवी मानते हैं।
गरियाबंद-जतमई माता
गरियाबंद जिले में स्थित जतमई माता के मंदिर से सटी जलधाराएं उनके चरण स्पर्श करती हैं। स्थानीय मान्यता के अनुसार ये जलधाराएं माता की दासी होती हैं। मुख्य प्रवेश द्वार के शीर्ष पर, एक पौराणिक पात्रों का चित्रण भित्ति चित्र देख सकते हैं। मां जतमई की पत्थर की मूर्ति गर्भगृह में स्थापित है।
महासमुंद-मां चंडी पीठ
महासमुंद जिले के बागबहारा घुंचापाली में मां चंडी का मंदिर स्थित है। किंवदन्ती है कि करीब 150 साल पहले ये तंत्र-मंत्र की साधना स्थल हुआ करता था। यहां महिलाओं का जाना प्रतिबंधित था। प्राकृतिक रूप से माता चंडी के स्वरूप में शिला (पत्थर) ने आकार लिया।