BILASPUR. देशभर में बॉयोलॉजिकल पिता की संपत्ति को लेकर कई मामले सामने आते रहते हैं। एक ऐसा ही मामला छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में आया है। दरअसल, युवक ने खुद को एक शख्स का बॉयोलॉजिकल बेटा साबित करने और संपत्ति में हक की मांग करते हुए बिलासपुर हाई कोर्ट में याचिका लगाई थी। इस सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट के जस्टिस गौतम भादुड़ी और जस्टिस रजनी दुबे की बेंच ने याचिका मंजूर कर ली है। साथ ही आदेश में कहा है कि बच्चों को यह अधिकार हमेशा मिला हुआ है, इसके लिए कोई समय सीमा तय नहीं है। बता दें कि फैमिली कोर्ट ने समय सीमा का हवाला देते हुए आवेदन नामंजूर कर दिया था।
जानकारी के अनुसार छत्तीसगढ़ के सूरजपुर के उमेशपुर गांव में रहने वाले युवक ने हाई कोर्ट में याचिका लगाई थी। इसमें खुद को एक पुरुष और महिला का बॉयोलॉजिकल बेटा घोषित करने और संपत्ति में अधिकार देने की मांग की गई थी। बताया कि वह अपनी मां के साथ रहता है। उसका जन्म 12 नवंबर 1995 को हुआ था। उसके पिता की उमेशपुर गांव में पैतृक संपत्ति है, जहां उसकी मां पड़ोसी थी। पिता ने विवाह का झांसा देकर शारीरिक संबंध बनाया, जिससे मां गर्भवती हुई। दबाव के बाद भी उसने एबॉर्शन से इनकार कर दिया। इसके बाद पिता ने संबंध समाप्त कर दिया।
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इस मामले में सूरजपुर थाने में रिपोर्ट भी दर्ज करवाई गई थी। पुलिस ने आईपीसी की धारा 376 के तहत केस दर्ज किया था। इसके बाद विवाह करने से इनकार कर दिया। इसके बाद 1995 में उसका जन्म हुआ। हाई कोर्ट में याचिका के जरिए युवक ने बताया कि शादी से पहले मां बनने के कारण समाज से बाहर कर दिया गया था। उनके पास आय का कोई साधन नहीं है। भरण पोषण की मांग करते हुए सूरजपुर के कोर्ट में मामला प्रस्तुत किया गया था। शैलेंद्र का नाम पिता के तौर पर उसके हर सरकारी और गैर सरकारी दस्तावेजों में दर्ज है।
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याचिका में यह भी बताया कि वह वर्ष 2017 में बीमार पड़ा था। इलाज के लिए आर्थिक मदद मांगने वह अपने पिता के घर गया, लेकिन उन्होंने बेटा मानने और मदद करने से इनकार कर दिया। फैमिली कोर्ट ने दस्तावेज और सबूतों पर विचार किए बिना ही समय सीमा का हवाला देते हुए आवेदन निरस्त कर दिया था। जबकि फैमिली कोर्ट किसी व्यक्ति की वैधता घोषित कर सकता है। बच्चे के पिता की संपत्ति पर अधिकार की घोषणा करने का अधिकार है।
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