BILASPUR. छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में मानसिक अस्वस्थ्य, मूक-बधिर से दुष्कर्म करने वाले आरोपी ने याचिका दायर ट्रायल कोर्ट के फैसले के विरोध में अपील किया था। कोर्ट में मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा व जस्टिस रविन्द्र कुमार अग्रवाल के बेंच में हुई। कोर्ट ने याचिकाकर्ता के याचिका को खारिज करते हुए बच्चों की गवाही एवं एफएसएल रिपोर्ट को दोष सिद्धि के लिए साक्ष्य माना है। कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को यथावत रखने आदेश दिया है।
बता दें, धमतरी जिला क्षेत्र में रहने वाली मानसिक अस्वस्थ्य मूक बधिर बालिका 3 अगस्त 2019 की दोपहर गांव के अन्य बच्चों के साथ आरोपी चैन सिंह के घर पर टीवी देख रही थी। दोपहर 3.30 बजे आरोपी आया और पीड़िता का हाथ पकड़कर खिंचते हुए कमरे के अंदर ले गया। साथ टीवी देख रहे बच्चों ने बंद दरवाजा धक्का देकर खोला तो देखा कि आरोपी पीड़िता के साथ गलत काम कर रहा था।
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इसके बाद आरोपी उसे छोड़कर भाग गया। बच्चों ने इसकी जानकारी पीड़िता की मां को दी। पीड़िता की मां ने देखा कि उसके हाथों की चूड़ी टूटी हुई है कपड़ा भी ठीक नहीं था। मामले की रिपोर्ट थाने में दर्ज कराई गई। मेडिकल जांच में डॉक्टर ने पीड़िता के मानसिक अस्वस्थ्य व मूक बधिर होने की रिपोर्ट दी।
पुलिस ने कपड़ा जप्त कर एफएसएल जांच के लिए भेजा। सुनवाई के बाद न्यायालय ने आरोपी को 376 (2) में 10 वर्ष कैद व 5000 रुपये अर्थदंड की सजा सुनाई है। इसके खिलाफ आोपी ने हाईकोर्ट में अपील पेश की थी।
ऐसे हुआ साबित
आरोपी याचिकाकर्ता ने अपील में कहा कि उसे झूठे आरोपी में फंसाया गया है। पीड़िता का परीक्षण नहीं किया गया है। पीड़िता का परीक्षा नहीं किया गया है। पीड़िता ने इस संबंध में कुछ नहीं कहा है। हाईकोर्ट ने आदेश में कहा पीड़िता मूक-बधिर और मानसिक रूफ से फिट नहीं है। वह बोल भी नहीं सकती।
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इसलिए उससे गवाह के रूप में पूछताछ नहीं की गई। उसकी मां का कथन है कि जिन गवाह जिन्होंने देखा अपीलकर्ता पीड़िता को घर के अंदर खींच रहा था और जब गवाह ने दरवाजे को धक्का दिया। उसने देखा कि अपीलकर्ता बलात्कार कर रहा था। इसके अलावा एफएसएल रिपोर्ट से भी बलत्कार की पुष्टि हुई है।