RAIPUR. छत्तीसगढ़ में आरक्षण का मुद्दा एक बार से गरम हो गया है। साय सरकार ने आरक्षण प्रावधानों के अध्ययन और इसके क्रियान्यवयन को लेकर मंत्री रामविचार की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय कमेटी गठित कर दी है, जो दो सालों के भीतर अपनी रिपोर्ट सौंपेगी। लेकिन कांग्रेस ने कमेटी गठन पर ही सवाल खड़े करते हुए, इसे जनता के साथ धोखा और छल करार दिया है।
बता दें साल 2012 में तत्कालीन रमन सिंह की सरकार ने प्रदेश में 50 फीसदी आरक्षण कोटा को बढ़ाकर 58 फीसदी कर दिया गया था। लेकिन 50 फीसदी आरक्षण की अंतिम सीमा की संवैधानिक बाध्यता से हटकर 58 प्रतिशत का आरक्षण क्यों दिया गया, इसे जस्टिफाई करने का काम अदालत में बाकी था।
करीब दो दशक तक मामला अदालत में चलता रहा, लेकिन सितंबर 2022 तक राज्य सरकार ये बताने में नाकाम रहीं कि आरक्षण की सीमा क्यों बढ़ाई गई। नतीजतन हाईकोर्ट ने 58 फीसदी आरक्षण का आदेश रद्द कर दिया। प्रदेश फिर से 50 फीसदी आरक्षण स्लॉट में चला गया, लेकिन इसकी सबसे बड़ी मार प्रदेश की बहुसंख्यक आबादी आदिवासी वर्ग पर पड़ी। 32 फीसदी का आरक्षण 20 फीसदी पर चला गया। आदिवासी समाज का प्रचंड रोष और राजनीतिक हमलों ने तत्कालीन कांग्रेस सरकार को हलाकान कर दिया। किसी तरह सरकार, सरकारी नौकरियों की भर्ती में 58 फीसदी आरक्षण जारी रखने के लिए सुप्रीम कोर्ट से राहत ले सकी। लेकिन, संवैधानिक संकट ज्यों का त्यों बरकरार था।
साय सरकार बनने के बाद अब, आरक्षण के प्रावधानों और उन्हें लागू करने के तौर तरीकों पर स्टडी के लिइ पांच सदस्यीय समित का गठन कर दिया है। सीनियर आदिवासी नेता और मंत्री रामविचार नेताम इसके अध्यक्ष है। आदिवासी समाज से ही विधायक गोमती साय, पूर्व आईएएस और वर्तमान विधायक नीलकंठ टेकाम को सदस्य बनाया गया है। अऩुसूचित जाति वर्ग से गुरु खुशवंत साहेब को और ओबीसी वर्ग से विधायक गजेंद्र यादव को सदस्य बनाया गया है। ओबीसी वर्ग से ही एक कांग्रेस विधायक संगीता सिन्हा को भी इसका सदस्य बनाया गया है।
ये सभी विधायक छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग अधिनियम 1994, यानी एसटी, एससी और ओबीसी वर्गों के लिए आरक्षण अधिनियम, और उसके अधीन बनाए गए नियमों के उपबंधों के कार्यान्वयन का पुनर्वलोकन करेगी। साथ ही ये देखेगी कि इन उपबंधों के कार्यान्वयन में आने वाली कठिनाई को कैसे दूर किया जाए.इसके लिए समिति सरकार को सुझाव देगी।
कांग्रेस ने बोला तीखा हमला
हालांकि, सरकार के इस पहल पर कांग्रेस ने तीखा हमला बोल दिया है। काग्रेस सरकार की मंशा पर सवाल खड़े कर रही है। वह सवाल कर रही है कि जब छत्तीसगढ़ विधानसभा से आरक्षण संशोधन विधेयक सर्वसम्मति से पारित कर चुकी है, जिसमें कांग्रेस के साथ साथ साथ भाजपा और अन्य दूसरे दल के विधायक ने भी समर्थन दिया हुआ है, तो उस बिल को राजभवन से पास कराने की बजाए नई समिति का गठन क्यों किया जा रहा है। ऊपर से, कार्यकाल भी 2 साल का दिया गया है। यह जनता के साथ छल है, धोखा है।
आरक्षण मामले में सुप्रीम कोर्ट से मिली राहत के चलते ही सरकार फिलहाल राहत की सांस ले रही है, अगर ये राहत छिनी तो राज्य सरकार की सांसे भी अटक जाएगी। आदिवासियों के 32 फीसदी आरक्षण को कम किया तो वोट बैंक से हाथ धोना पड़ेगा, और इसे जारी रखने के लिए कर्नाटक सरकार की तरह कोर्ट में मजबूती से तर्क रखकर कोर्ट को संतुष्ट करना होगा।