BILASPUR. छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में गुमशुदगी के मामलें में बंदी प्रत्यक्षीकरण रिट याचिका दायर की गई थी। इस मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा व जस्टिस रजनी दुबे की बेच में हुई। कोर्ट ने इस याचिका के लिए महत्वपूर्ण मापदंड तय किया है। कोर्ट ने कहा कि गुमशुदगी के मामले में दायर बंद प्रत्यक्षीकरण रिट मान्य नहीं होगी। यह केवल तभी मान्य होनी चाहिए जब किसी की स्वतंत्रता बाधित की जा रही है। लापता व्यक्तियों के मामले भारतीय दंड संहिता के नियमित प्रविधानों के तहत दर्ज किए जाने हैं। गुमशुदा व्यक्तियों के मामलों को निपटाने के लिए संवैधानिक न्यायालयों के असाधारण क्षेत्राधिकार का प्रयोग नहीं किया जा सकता है।
बता दें, राजनांदगांव जिले के मुड़ीपारा निवासी खिलेन्द्र चौहान ने 6 अप्रैल 2023 से रायगढ़ से लापता पत्नी की पतासाजी के लिए बंदी प्रत्यक्षीकरण रिट याचिका दायर की है। इस पर कोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। याचिकाकर्ता की शादी प्रियंका चौहान से वर्ष 1999 में हुई थी। आठ अगस्त 2023 को याचिकाकर्ता ने रायगढ़ थाने में गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई थी।
याचिकाकर्ता ने थाना प्रभारी रायगढ़ पर आरोप लगाया है कि उनकी पत्नी छह अप्रैल 2023 से लापता है। इस पर गुमशुदगी रिपोर्ट दर्ज की गई और इसके बाद उन्होंने एसपी रायगढ़ के समक्ष शिकायत भी दर्ज कराई लेकिन उसकी पत्नी का पता नहीं चल पाया है। राज्य शासन की ओर से इस मामले में जवाब पेश करते हुए महाधिवक्ता कार्यालय के विधि अधिकार ने कोर्ट को बताया कि याचिकाकर्ता की पत्नी का अंतिम मोबाइल लोकेशन उदयपुर, राजस्थान में पाया गया था।
उसकी खोज के लिए पुलिस द्वारा हर संभव प्रयास किए जा रहे हैं। इस मामले में कोर्ट ने कहा कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत किसी गुमशुदा व्यक्ति का पता लगाने के लिए सीआरपीसी के तहत जांच करने के लिए अधिकृत जांच एजेंसी को शामिल करने की शक्ति का प्रयोग नहीं किया जा सकता है। बंदी प्रत्यक्षीकरण की रिट जारी करने के लिए स्पष्ट आधार बनाए जाने चाहिए।
इसलिए नहीं मान्य की गई रिट
डिवीजन बेंच ने स्पष्ट किया है कि गुमशुदा व्यक्तियों के मामलों को बंदी प्रत्याक्षीकरण रिट के प्रविधान के तहत नहीं लाया जा सकता। ऐसे व्यक्तियों के मामले भारतीय दंड संहिता के नियमित प्रविधानों के तत दर्ज किए जाने हैं और संबंधित पुलिस अधिकारी आपराधिक प्रक्रिया संहिता के तहत निर्धारित तरीके से इसकी जांच करने के लिए बाध्य है। ऐसे मामालों को समक्ष न्यायालय द्वारा नियमित मामलों के रूप में निपटाया जाना चाहिए।
क्या है बंदी प्रत्यक्षीकरण रिट
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि याचिकाकर्ता ने बंदी प्रत्यक्षीकारण की प्रकृति में रिट जारी करने के लिए यह याचिका दायर की है। बंदी प्रत्यक्षीकरण रिट गैर कानूनी हिरासत से तत्काल रिहाई का एक प्रभावी साधन है। चाहे वह जले में हो या निजी हिरासत में। बंदी प्रत्यक्षीकरण रिट अनिवार्य रूप से एक प्रक्रियात्मक रिट है। रिट का उद्देश्य उस व्यक्ति की रिहाई सुनिश्चित करना है जिसे अवैध रूप से किसी ने बंधक बना लिया है और उसकी स्वतंत्रता पर रोक लगा दी है। रिट केवल उस लक्ष्य को प्राप्त करने का साधन है जो संबंधित व्यक्ति की स्वतंत्रता सुरक्षित करना है। संविधान के अनुच्छेद 21 में यह प्रविधान है कि कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अलावा किसी भी व्यक्ति को जीवन और स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जाएगा।