BILASPUR. पदोन्नति में आरक्षण मामले में हाई कोर्ट ने बड़ा फैसला किया है। दरअसल, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग के कर्मचारियों को प्रमोशन में आरक्षण देने के लिए वर्ष 2019 में जारी अधिसूचना के खिलाफ जनहित याचिका समेत अन्य याचिकाओं पर चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस रवींद्र कुमार अग्रवाल की बेंच ने निर्णय दिया है।
हाई कोर्ट ने वर्ष 2019 में कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में जारी की गईं अधिसूचनाएं निरस्त कर दी हैं। 5 मार्च को सुनवाई पूरी होने के बाद हाई कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा था। हाई कोर्ट ने कहा है कि अजा और अजजा को प्रमोशन में आरक्षण की नीति सुप्रीम कोर्ट के नियमों और संविधान के अनुच्छेद 16(4)(ए) और 4(बी) के प्रावधानों के आधार पर ही बनाई जा सकती है।
छत्तीसगढ़ सरकार ने 22 अक्टूबर 2019 को प्रमोशन में आरक्षण का कोटा तय करने को लेकर एक अधिसूचना जारी की. इसमें वर्ग-1 से वर्ग-4 तक के अनुसूचित जाति के कर्मचारियों लिए 13 प्रतिशत और अनुसूचित जनजाति कर्मचारियों के लिए 32 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया था। इसके खिलाफ रायपुर निवासी एस संतोष कुमार ने जनहित याचिका और अन्य ने याचिकाएं लगाई थीं।
याचिका में कहा गया कि पदोन्नति में आरक्षण सुप्रीम कोर्ट के दिशा- निर्देशों और आरक्षण नियमों के खिलाफ है, लिहाजा इसे निरस्त किया जाए। 2 दिसंबर 2019 को राज्य शासन की तरफ से स्वीकार किया गया कि अधिसूचना तैयार करने में गलती हुई है, तब सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने इस गलती को सुधारने के लिए एक हफ्ते का समय दिया, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई।
हाई कोर्ट ने इसके बाद अधिसूचना पर रोक लगाते हुए और सरकार को नियमों के अनुसार दो महीने के भीतर फिर से नियम बनाने को कहा। बता दें कि राज्य सरकार ने अर्जी प्रस्तुत कर आरक्षण पर रोक को संशोधित करने या रद्द करने की मांग करते हुए कहा था कि आरक्षण पर रोक हटाने से आरक्षित श्रेणी के सरकारी कर्मचारियों की चार साल से रुकी पदोन्नति आगे बढ़ सकेगी।
23 नवंबर 2023 को सीजे रमेश सिन्हा की बेंच ने हाईकोर्ट ने राज्य सरकार की अर्जी यह कहते हुए खारिज कर दी थी कि 2019 के आदेश से वरिष्ठता के आधार पर नियमित पदोन्नति में किसी तरह की बाधा पैदा नहीं होती है।
हाई कोर्ट ने ये भी कहा कि इस तरह के संशोधन के लिए पहले कोई औपचारिक आवेदन नहीं दिया गया था. हाईकोर्ट ने मामले में अंतिम सुनवाई के लिए जनवरी 2024 का समय दिया था।