RAIPUR. छत्तीसगढ विधानसभा चुनाव में अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने के बाद भाजपा एक बार फिर से चुनाव मैदान में हैं। इस बार परीक्षा लोकसभा चुनाव की है और लक्ष्य 11 की 11 लोकसभा सीट जीतने की है।
इस संग्राम की शुरूआत भाजपा में चुनाव के चाणक्य कहे जाने वाले गृहमंत्री अमित शाह के छत्तीसगढ़ दौरे से हो रही है। अब ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि चाणक्य के चक्रव्यूह का कांग्रेस के पास क्या काट है?
देशभर में लोकसभा चुनाव बिगुल बजने ही वाला है, लेकिन उससे पहले छत्तीसगढ़ चुनाव की रणभेरी बज उठेगी। क्योंकि चुनावी रणनीति के चाणक्य कहे जाने वाले गृहमंत्री अमित शाह लोकसभा चुनाव के लिए पहला चुनावी सभा जांजगीर से करने जा रहे हैं।
22 फरवरी को वो यहां जनसभा को संबोधित करेंगे, उससे कोंडागांव में बस्तर, कांकेर और महासमुंद लोकसभा कलस्टर की बैठक करेंगे। दोनों ही कार्यक्रम अपने आप में कई राजनीतिक मायने लिए हुए हैं।
विधानसभा चुनाव में बस्तर क्षेत्र ने 12 में से 8 विधानसभा सीट दिए हैं। आदिवासी क्षेत्र से यात्रा की शुरूआत कर आदिवासियों का आभार जताने के साथ साथ यह संदेश भी देने की कोशिश है कि पार्टी और पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के लिए प्रदेश का अदिवासी वर्ग हमेशा प्राथमिकता में हैं।
लेकिन जनसभा की शुरुआत जांजगीर से है, क्योंकि विधानसभा चुनाव में जांजगीर लोकसभा सीट की आठों की आठों विधानसभा सीटें भाजपा खोई है। तो गृहमंत्री की चुनावी सभा का आगाज भी उसी क्षेत्र से है, जहां पार्टी सबसे कमजोर है, जहां के कार्यकर्ताओं में जोश फूंकने की जरुरत सबसे पहले हैं।
कांग्रेस की हार से टूटे महारथी
भाजपा की तैयारी के सामने कांग्रेस के सामने चुनौती दोहरी है, विधानसभा चुनाव में पार्टी को इतनी करारी शिकस्त कभी नहीं खानी पड़ी, वो भी तब जब पांच साल पहले पार्टी ने प्रचंड सीट और वोट शेयर के साथ भाजपा को धूल चटाया था। इस हार ने पार्टी के आम कार्यकर्ता से लेकर महारथियों को भी तोड़ कर रख दिया है।
लोकसभा चुनाव में पिछले एक दशक से सेंटिमेंट मोदी की ओर झुका हुआ है। पिछली बार जब विधानसभा में भाजपा का सूपड़ा साफ था, तब भी कांग्रेस 11 में 2 ही सीट जीत पाई थी। इस बार तो विधानसभा चुनाव के नतीजे और मोदी लहर का ग्राफ दोनों ही भाजपा के पक्ष में दिख रहे हैं।
अलग राज्य बनने के बाद अब तक भाजपा 11 लोकसभा सीटें कभी नहीं जीत पाई है। जीत का आंकड़ा 9 और 10 के बीच झूलता रहा। राज्य बनाने के बाद अटल बिहारी वाजपेयी ने गिफ्ट के तौर पर 11 लोकसभा सीट मांगी थी, तब भी 10 ही सीट जीत पाए थे। इस बार फिर से 11 में 11 का लक्ष्य है। देखना होगा इस बार टार्गेट हिट होता है या फिर हमेशा की तरह कम से 1 सीट की पराजय का मिथ कायम रहता है।