NEW DELI.सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार सीधे तौर पर मानवीय गरिमा और व्यक्तित्व से संबंधित है. अदालत सचेत है कि कानूनी अधिकार के बिना किसी को भी कारावास नहीं भुगतना चाहिए. शीर्ष अदालत ने जोर देकर कहा कि मौलिक अधिकार अलग नहीं हैं, बल्कि स्वतंत्रता के परस्पर जुड़े संजाल का निर्माण करते हैं. यह इस अदालत का कर्तव्य है कि वह लंबे समय तक कैद को हतोत्साहित करे. जस्टिस केएम जोसेफ, हृषिकेश रॉय और बीवी नागरत्ना की पीठ ने कहा, सीआरपीसी (दंड प्रक्रिया संहिता) के प्रासंगिक प्रावधान वे कानून हैं जो किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए आवश्यक हैं.
पीठ ने कहा कि संविधान निज स्वतंत्रता के अधिकार सहित सभी मानवाधिकार, विशेष मौलिक अधिकार, किसी की व्यक्तिगत गरिमा का सम्मान करने का अधिकार है देता है. पीठ ने कहा कि इसलिए हमने उस व्याख्या को अपनाया है जिससे व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा करते हुए न्याय से समझौता नहीं किया जाए. इसके साथ ही व्यक्तियों की अनुचित हिरासत से बचा जाना चाहिए. पीठ की ओर से फैसला लिखने वाले जस्टिस रॉय ने कहा कि कानून की अदालत के रूप में एक बार संहिता की कानूनी शर्तें पूरी हो जाने के बाद हम कानून को लागू करने और गैरकानूनी नजरबंदी को रोकने और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा करने के लिए कर्तव्यबद्ध हैं. न्यायमूर्ति रॉय ने कहा, परिणाम जो भी हो यह अदालत सचेत है कि कानूनी अधिकार के बिना किसी को भी कारावास नहीं भुगतना चाहिए.
खंडपीठ ने जोर देकर कहा कि कोई भी कानून जो स्वतंत्रता को छीन ले उसे न्यायसंगत, निष्पक्ष और उचित होना चाहिए . अनुच्छेद 14, 19 और 21 के तहत उल्लिखित अधिकारों के सामूहिक संचालन को पास करना चाहिए. न्यायमूर्ति रॉय ने कहा कि जैसे ही वैधानिक रिमांड अवधि समाप्त होती है, अभियुक्त को डिफॉल्ट जमानत का एक अपरिहार्य अधिकार प्राप्त होता है और उसी की रक्षा करने की आवश्यकता है. पीठ ने कहा लंबे समय तक कैद को हतोत्साहित करना इस अदालत का कर्तव्य है. शीर्ष अदालत ने कानूनी सवाल की जांच करते हुए यह टिप्पणियां कीं कि क्या रिमांड की तारीख को शामिल किया जाना है या नहीं, डिफॉल्ट जमानत के दावे पर विचार करने के लिए 60/90-दिन की अवधि की गणना करते समय सीआरपीसी की धारा 167 (2) के प्रावधान (ए) में विचार किया गया है.
इस धारा के अनुसार रिमांड की तारीख से 60 दिनों के भीतर चार्जशीट दाखिल नहीं करने पर अभियुक्त डिफॉल्ट जमानत का हकदार होगा और कुछ श्रेणी के अपराधों के लिए अवधि को 90 दिनों तक बढ़ाया जा सकता है. शीर्ष अदालत ने कहा कि बाद में चार्जशीट दायर करने से डिफॉल्ट जमानत का अधिकार खत्म नहीं हो जाता है और आरोपी के पास डिफॉल्ट जमानत का अधिकार बना रहता है. इसमें कहा गया है कि सीआरपीसी की धारा 167 की वैधानिक रूपरेखा को दी गई किसी भी व्याख्या को आवश्यक रूप से उचितता, निष्पक्षता और अधिकारों की अपरिवर्तनीयता के मानकों तक मापना होगा. इस पर जोर देने की आवश्यकता नहीं है कि डिफॉल्ट जमानत का प्रश्न व्यक्तिगत स्वतंत्रता और संविधान के अनुच्छेद 21 से जुड़ा हुआ है.