RAIPUR. आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के ‘जाति भगवान ने नहीं पुजारियों ने बनाई है’ वाले बयान के बाद बवाल मच गया है। इसपर जगद्गुरु शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने बड़ी प्रतिक्रिया दी है। आज रायपुर में मीडिया से चर्चा के दौरान शंकराचार्य ने कहा कि उन्होंने अगर कोई अनुसंधान किया होगा तो उनसे यह पूछना होगा कि उन्हें किस अनुसंधान के तहत यह जानकारी मिली है. वे कुछ बताएंगे तो उसके अनुसार ही हम आगे कुछ कह पाएंगे।
शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा कि अभी तो मोहन भागवत ने अपनी बात कही है। तो इस बारे में कोई ना कोई अनुसंधान उन्होंने जरूर किया होगा या अध्ययन किया होगा, क्योंकि हम लोग यह जानते हैं कि चातुर्वर्ण्यं मया सृष्टं. गीता में भगवान ने कहा है कि मेरे द्वारा यह सृजित किया गया है। अब सवाल यह है कि वह किस अर्थ में कह रहे हैं. किस अध्ययन के बारे में कह रहे हैं। उनकी बात जानने के बाद ही इसमें विस्तार से कुछ कहा जा सकता है।
शंकराचार्य ने कहा कि देश में राजनीति ध्रुवीकरण के प्रयास करते रहती है। कई तरह से ध्रुवीकरण के प्रयास होते हैं। बीपी सिंह के समय मंडल कमंडल जैसी चीज को भी देखा था, तब भी जातियों को बांटने की कोशिश की गई थी। अभी धर्म के आधार पर ध्रुवीकरण है। कुछ लोग चाहते हैं कि समुदाय में भी दो भाग कर दिया जाए अगड़े और पिछड़े का, फिर कोई अगड़े की राजनीति करे और कोई पिछड़े की राजनीति करे। ऐसी नेताओं की इच्छा है।
धर्म ग्रंथ के बारे में कहने का अधिकार धर्म आचार्यों को होना चाहिए. राजनीति के लोगों का नहीं होना चाहिए। उन्होंने कहा कि राजनीति करने वाला अगर धर्म ग्रंथ के बारे में कहता है तो समझ लीजिए कि धर्म ग्रंथ का आशय लेकर वह राजनीति में काबिज होना चाहते हैं।
जिसका विरोध हो रहा है, वह तुलसीदास का नहीं, समुद्र का कथन है
रामचरित्र मानस के चौपाई को लेकर जगतगुरु शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा कि जिस बात का विरोध हो रहा है, वह तुलसीदास का कथन नहीं है. यह समुद्र का कथन है, जब 3 दिन समुद्र के किनारे राम बैठे रहे राम, वे समुद्र से आगे जाने का रास्ता मांग रहे थे. लेकिन वे नहीं आए. तब राम ने धनुष और बाण निकाला. तब समुद्र प्रकट हुआ. समुद्र ने यह कथन कहा है कि महाराज हम गवार हैं, यह समुद्र का कहना है।