RAIPUR. छत्तीसगढ़ की स्थापना दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव एवं राज्योत्सव में आदिवासी संस्कृति की छँटा बिखर रही है। प्रदेश की राजधानी रायपुर के साइंस कॉलेज मैदान में 1 से 3 नबंवर तक चलने वाले इस कार्यक्रम में बड़ी संख्या में लोग आ रहे हैं। इसमें देशभर के तमाम आदिवासी समूहों के साथ अलग-अलग 10 देशों के कुल 1500 आदिवासी हिस्सा लेने पहुंचे हैं। नृत्य महोत्सव के पहले दिन अलग-अलग क्षेत्रों के आदिवासियों ने नृत्य महोत्सव में अपनी सुंदर प्रस्तुति दीं। tirandaj.com आपको एक-एक नृत्य की जानकारी देगा।
मध्य प्रदेश की शैली-गेड़ी
मध्यप्रदेश से आए आदिवासी समूह ने शैली गेड़ी नृत्य की शानदार प्रस्तुति दी। अब तक आपने छत्तीसगढ़ की ही गेड़ी देखी होगी। लेकिन मध्य प्रदेश में भी यहीं की तरह शैली और गेड़ी होती है। वहां भी हमारे पंथी नृत्य की तरह ही पिरामिड बनाते हैं। इसमें महिला नर्तकों के सिर में एक के ऊपर एक घड़े रहते हैं। और उनके ऊपर दीपक होता है।
हारुल नृत्य में दिखी उत्तराखंड की पहाड़ी संस्कृति
यह नृत्य उत्तराखंड में विवाह, दिवाली, मेले जैसे अवसरों में किया जाता है। इसमें हाथी पर बैठा व्यक्ति हाथों में कुल्हाड़ीनुमा अस्त्र घुमाते रहता है, और उसके चारों तरह अन्य नर्तक नाचते हैं।
नागालैंड के कलाकारों ने दी “माकु हिमीसी” नृत्य की प्रस्तुति
यह एक शौर्य नृत्य है, जो लड़ाई जीतने के बाद शौर्य का प्रदर्शन करने के लिए किया जाता है। इसमें पुरुष नृत्यकारों ने रोमन सैनिकों की तरह के कैप टोप पहन रखे हैं, और नृत्य में प्रयोग होने वाले वाद्य यंत्रों की थाप और संगीत की गूंज दूर तक सुनाई देती है।
महाराष्ट्र के नर्तक दल ने किया धनगरी ग़ज़ा लोक नृत्य
इस नृत्य का स्वरूप हाथी के चलने जैसा होता है। सबसे ख़ास-बात इसमें बच्चे से लेकर बुजुर्ग तक शामिल होते हैं। इस नृत्य में शिव पार्वती का जुड़ाव दर्शाया गया है।
महाराष्ट्र का सोंगी मुखौटे नृत्य ने जीता लोगों का दिल
इस नृत्य में भारत की समृद्ध लोक नृत्य-संगीत की परंपरा का सबसे बढ़िया उदाहरण है। यह मुखौटा नृत्य चैत्र मास की पूर्णिमा पर देवी की पूजा के साथ महाराष्ट्र में किया जाता है। असत्य पर सत्य की विजय के इस नृत्य में दो कलाकार नरसिंह रूप धारण कर नृत्य करते हैं।
आंध्र प्रदेश के जनजातीयों ने किया ढ़िमसा नृत्य
इस नृत्य को करने वाली युवतियां चटक रंग के हरे, लाल, गुलाबी पीले रंग की साड़ियां पहनती हैं, और अपने गले में श्रृंगार के लिए माला पहने रहती है। इस नृत्य में किरिडी, मोरी, दप्पू, टुडुमु और जोदुकोमुलु सहित इस नृत्य शैली के साथ अद्वितीय आदिवासी संगीत वाद्य यंत्र का वादन किया जाता है, जिसे पुरुषों द्वारा बजाया जाता है।
अरुणाचल का इगु नृत्य
अरुणाचल की लोकसंस्कृति में मृत्यु के पश्चात आत्मा से संवाद लोकनृत्य के माध्यम से होता है। सामान्य मौत की स्थिति में परिजनों के मृत्यु के चार-पांच दिन तक उपवास रखा जाता है और इस अवधि में मृतात्मा से संवाद लोकनृत्य के माध्यम से होता है।
मणिपुर के कलाकारों ने “डान्स ऑफ़ लाइवलीहुड” की दी प्रस्तुति
इस नृत्य को बिना वाद्य यंत्रों के प्रयोग से किया जाता है। यह झूम खेती की तैयारी का नृत्य है। वर्ष में जब भी उत्सव मनाना हो इसे किया जाता है।
असम का बोरो नृत्य
लोक कलाकारों ने गले में मोतियां पहनी थीं और बालों में फूलों की सज्जा की थीं। पूरा असमिया वस्त्र विन्यास और सजावट की लोकपरंपरा दर्शकों के सामने सजीव हो उठी। चटख रंगों के साथ नृत्य की आकर्षक मुद्राओं ने दर्शकों के बीच समां बांध दिया।
राजस्थान की चकरी नृत्य
चकरी नृत्य (हाड़ौती) महिला प्रधान नृत्य है। तेज रफ्तार के साथ नृत्य के समय चक्कर काटने के कारण इसे चकरी नृत्य कहते हैं। हाड़ौती अंचल में किए जाने वाले इस नृत्य में कंजर जाति की अविवाहित युवतियाँ भाग लेती हैं।
ओड़िसा के कलाकारों ने दी घुड़का नृत्य की प्रस्तुति
इस नृत्य में लकड़ी और चमड़े से बने वाद्य यंत्र घुड़का का उपयोग किया जाता है। नृत्य में पुरूष और महिला दोनों शामिल होते है। नृत्य समूह की महिलायें कपटा (साड़ी), हाथों में भथरिया और बदरिया, गले में पैसामाली, भुजाओं में नागमोरी पहन कर नृत्य करती है। इसी प्रकार पुरूष लंगोट (धोती) और सिर में खजूर की पत्ती से बनी टोपी विशेष रूप से पहनते है। काजल से अपने चेहरे पर विभिन्न प्रकार की आकृतियां नर्तक बनाते हैं।