राजनांदगाव। जिले की छुईखदान ब्लॉक की सर्पीली घाटी (sarpili ghati) यानी बैताल घाटी (baital ghati) तो आपने देखी ही होगी। वही घाटी जो अपने घुमाव और रचना के कारण किसी सांप की तरह दिखाई देती है। इस अद्भुत घाटी पर एक ऐसी माता विराजमान हैं, जिनके दोनों हाथ और एक पैर नहीं है। जैसे-जैसे बैताल घाटी देखने आने वालों की भीड़ बढ़ रही है, वैसे-वैसे इन अनोखी माता (Unique Statue of Mother Goddess) के दरबार में श्रद्धालुओं की संख्या भी बढ़ रही है।
जिले के बसंतपुर गांव की बैताल घाटी में घाटी के ऊपर बैताल रानी का मंदिर (baital rani temple) है। माता इस समय झोपड़ी में हैं। हालांकि पक्के मंदिर का निर्माण चल रहा है। मंदिर की खास बात है माता की मूर्ति। मंदिर में जो मूर्ति है उसके दोनों हाथ और दाहिना पैर नहीं है (Statue of Mother Without heands-Leg)। माता का यह स्वरूप ही श्रद्दालुओं को चौंकाता है। माता को लेकर ग्रामीणों की ऐसी आस्था है कि झोपड़ी में बैठीं माता को पक्के मंदिर में स्थापित करने की तैयारी चल रही है। झोपड़ी से लगकर मंदिर का निर्माण भी शुरू हो गया है।
मंदिर के पुजारी बरसन मरकाम बताते हैं कि उनके पूर्वज उस समय से माता की प्रतिमा की पूजा कर रहे हैं जब यहाँ घोर जंगल था। पूर्वजों के अनुसार माता की मूर्ति सतयुग के समय की है। बताया जाता है कि माता का मायका मौजूदा लांजी गांव में था और आज जो धमधा है, वहां के गौड़ राजा दसवंत सिंह कोच्चर से उनकी शादी हुई थी। ससुराल में उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं था। 20-22 साल ससुराल में रहने के बाद भी जब माता को कोई सुख नहीं मिला तो उन्होंने वापस मायके आने का फैसला किया।
जब माता आने की तैयारी कर रहीं थीं तो उनके एक सेवक ने मायके तक छोड़ आने की बात कही। इस पर माता ने हामी भर दी और माता घोड़े पर सवार होकर अपने मायके के लिए धमधा से निकल पड़ीं। जब राजा को महल में रानी नहीं मिलीं तो उनकी खोज शुरू हुई। तब तक माता रास्ते में ही थीं, खोजबीन के दौरान माता रास्ते में विश्राम करती मिलीं। राजा शेर पर सवार होकर सैनिकों के साथ माता के पास पहुँच गए। राजा को भ्रम हो गया कि माता सेवक के साथ कहीं भाग रहीं थी।
पुजारी के अनुसार क्रुद्ध राजा ने माता का सिर, दोनों हाथ और दाहिना पैर तलवार से काट दिया। यह देखकर सेवक भागा, लेकिन 2-3 किलोमीटर दूर सैनिकों ने उसे पकड़ लिया और उसे भी मार दिया। इस घटना के करीब 10 साल बाद राजा ने भी जल समाधी ले ली। हालांकि उन्हें ऐसा करते किसी ने नहीं देखा। पुजारी के अनुसार मान्यता है कि एक समय तक यह मूर्ति बोलती थी। आज माता पर ग्रामीणों की गहरी आस्था है। नवरात्रि पर ग्रामीण मंदिर में जोत जलाते हैं। ग्रामीण मानते हैं कि माता की कृपा से ही गांव में खुशहाली है।
राज परिवार ने कराई थी बिजली की व्यवस्था
जहाँ माता की मूर्ति पाई गयी थी वह स्थान मौजूदा मंदिर से सामने स्थित मंदिर से दूसरी ओर है। ऐसा माना जाता है कि यहाँ आज भी पत्थर पर माता के पैर के निशान मौजूद हैं। इसके अलावा जिस घोड़े पर बैठकर माता जा रहीं थीं, उस घोड़े के निशान भी हैं। उस शेर के पगमार्क भी हैं जिस पर बैठकर राजा आया था। मंदिर समिति के अमर सिंह मरकाम के अनुसार यहाँ बिजली की व्यवस्था खैरागढ़ के राजा और विधायक रहे देवव्रत सिंह ने कराई थी। उन्होंने मंदिर निर्माण की भी बात कही थी, लेकिन अब वे इस दुनियां में नहीं हैं।