तीरंदाज डेस्क। हिन्दुओं के त्योहार में होली का पर्व का प्रमुख पर्व होता है। होलिका दहन से लेकर रंगो के पर्व तक इस त्योहार का खास महत्व है। हर साल फाल्गुन मास में ये पर्व बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। होली का त्योहार होलिका दहन के साथ ही शुरू होता है, फिर इसके अगले दिन रंग-गुलाल के साथ होली खेली जाती है। भारत में फाल्गुन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के अगले दिन होली मनाई जाती है।
वैसे तो होली को लेकर तरह तरह की मान्यताएं हैं। होलिका दहन से लेकर रंगो के पर्व तक इससे जुड़ी कई पौराणिक मान्यताएं हैं। इन्हीं में से एक भगवान शिव व कामदेव से जुड़ी कहानी भी है। पौराणिक मान्यता है कि भगवान शिव व कामदेव की कथा के साथ ही होली पर्व का खास नाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है होली का पर्व। आइए जानते हैं क्या है इससे जुड़ी यह कथा?
होली से जुड़ी भगवान शिव व कामदेव की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार एक समय ऐसा था जब देवी पार्वती भगवान शिव से विवाह करना चाहती थीं, लेकिन तपस्या में लीन शिव का ध्यान उनकी ओर नहीं गया। देवी पार्वती ने कई प्रयत्न किए लेकिन भगवान शिव का ध्यान नहीं टूटा। देवी पार्वती के प्रयत्नों को देखकर प्रेम के देवता कामदेव उनके पास पहुंचे।
कामदेव ने देवी पार्वती को सहयोग करने का प्रस्ताव दिया। इसके बाद देवी पार्वती के कहने पर कामदेव ने ध्यान में लीन भगवान शंकर पर पुष्प बाण चला दिया। इससे भगवान शिव की तपस्या भंग हो गई। इसके बाद उन्होंने अपना तीसरा नेत्र खोल दिया जिससे कामदेव भष्म हो गए।
इसके बाद भगवान शिव ने पार्वती की ओर देखा। पार्वती की आराधना सफल हुई और शिव ने उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया। लेकिन कामदेव के भस्म होने के बाद उनकी पत्नी रति को असमय ही वैधव्य सहना पड़ा। इसके बाद रति ने भगवान शिव से अपनी व्यथा बताई।
इसके बाद देवी पार्वती ने पिछले जन्म की बातें बताई तो भगवान शिव ने जाना कि कामदेव निर्दोष हैं। पिछले जन्म में दक्ष प्रसंग में उन्हें अपमानित होना पड़ा था। उनके अपमान से विचलित होकर दक्षपुत्री सती ने आत्मदाह कर लिया। उन्हीं सती ने पार्वती के रूप में जन्म लिया और इस जन्म में भी शिव का ही वरण किया।
इसके बाद शिव जी कामदेव को जीवित कर दिया। उसे नया नाम दिया मनसिज। कहा कि अब तुम अशरीरी हो। उस दिन फागुन की पूर्णिमा थी। आधी रात गए लोगों ने होली का दहन किया था। सुबह तक उसकी आग में वासना की मलिनता जलकर प्रेम के रूप में प्रकट हो चुकी थी।
कामदेव अशरीरी भाव से नए सृजन के लिए प्रेरणा जगाते हुए विजय का उत्सव मनाने लगे। ये दिन होली का दिन होता है। वहीं कई जगहों आज भी रति के विलाप को लोकधुनों और संगीत में उतारा जाता है। इस प्रकार भगवान शिव व कामदेव की कथा के साथ होली पर्व का नाता जुड़ा हुआ है।