तीरंदाज, रायपुर। 10 फरवरी को छत्तीसगढ़ में भूमकाल स्मृति दिवस के मौके पर अमर शहीद वीर गुंडाधूर को याद किया जा रहा है। अंग्रेजों के शासनकाल में जल-जंगल-जमीन की लड़ाई लड़ने वाले गुंडाधूर की कहानी भी कम दिलचस्प नहीं है। गुंडाधूर को वनवासी जादुई शक्तियों का स्वामी मानते थे। उन्हें लेकर इतिहासकारों ने कई रोचक बातें बताई हैं जिसका उल्लेख कई रचनाओं में मिलता है।
शहीद गुंडाधूर को भूमकाल विद्रोह का नायक माना जाता है। जगदलपुर काकतीय युगीन बस्तर की राजधानी रहा है। जगदलपुर से 8 मील की दूरी पर ग्राम नेतानार स्थित है। धुरवा बहुल यह ग्राम 1910 ई. के जननायक वीर गुंडाधूर के कारण बस्तर का चर्चित गांव है। गुण्डाधूर न तो राज परिवार का और न किसी जमींदार परिवार के सदस्य थे, न ही वह किसी गांव के मुखिया थे।
गुंडाधूर साधारण आदिवासी व धुरवा जनजाति के थे। गुंडाधूर का असली नाम गुण्डाधूर सिरहा था। गुंडाधूर का गांव के आदिवासियों पर खासा प्रभाव था। बताते हैं वह अशिक्षित था लेकिन उसकी बातें लोगों को आसानी से समझ में आती थी और आम लोगों के बीच जननायक के तौर पर वह प्रचलित था। गुंडाधूर गांव को गांव के लोग इसलिए भी मानते थे क्योंकि वह आदिवासियों की कई बीमारियों को वह ठीक करता था। यही नहीं वह लोगों का मानसिक उपचार भी किया करता था।
गुण्डाधूर ने कभी स्कूल नहीं गया और न ही उसने कहीं शस्त्र विद्या की ट्रेनिंग ली थी। इसके बाद भी वह गजब का फूर्तिला था। पेड़ों पर चढ़ना और इधर उधर चपल वानर की तरह गुलाटियां मारता था। यही नहीं गुंडाधूर को लेकर यह भी कहा जाता है कि उसके पास जादुई शक्तियां थी जिसके कारण वह गायब हो जाता था। भूमकाल विद्रोह के दौरान जिस कुशलता से उन्होंने इसका संचालन किया था वह देखने लायक था।
गुण्डाधूर को लेकर आदिवासी गांवों के वृद्ध लोग कई किस्से बताते हैं। गुंडाधूर को लेकर यह भी बताया जाता है कि वह जंगल में कब कहां से आता था कहां जाता था किसी को पता नहीं होता था। यह भी कहा जाता है कि गुंडाधूर को जादू टोना आता था व उसके पास तांत्रिक शक्तियां थी। लेकिन वह अपनी सभी शक्तियों का इस्तेमाल केवल आदिवासियों की भले के लिए ही करता था।
क्यों शुरू हुआ भूमकाल विद्रोह
भूमकाल विद्रोह का मुख्य कारण वन क्षेत्र में अंग्रेजों की दखल था। भूमकाल विद्रोह में बस्तर की व्यवस्था तथा प्रशासन के खिलाफ था। इस विद्रोह में बस्तर की सभी जनजातियां व जातियों ने अपना सहयोग दिया। अंग्रेज सरकार ने उस दौरान संरक्षित वन क्षेत्र नीति लागू किया जिससे वनवासियों के सामाजिक व आर्थिक अधिकारों का शोषण करने लगे। अंग्रेजों द्वारा आदिवासियों पर शारीरिक व मानसिक अत्याचार किया जाने लगा।
बस्तर पर हो गया था विद्रोहियों का अधिकार
भुमकाल विद्रोह के लिए 6 फरवरी का दिन निश्चित किया गया था। एक साथ बस्तर क्षेत्र की कई जातियां एक हुई। इस दौरान आदिवासियों ने सरकारी दफ्तरों को नष्ट कर दिया। 6 से 7 फरवरी तक लगभग समस्त बस्तर पर आदिवासियों का अधिकार हो चुका था। एक समय ऐसा भी आया जब विद्रोह से डरकर राजा रूद्र प्रताप सिंह ने नागपुर के चीफ कमिश्नर से फौजी सहायता मांगी। तब तक विद्रोही दन्तेवाड़ा पर कब्जा कर चुके थे।
यहां भी था एक विभिषण
इस विद्रोह में गुंडाधूर के मित्र ने सोनू मांझी विभिषण बन गया। जब आदिवासियों ने दंतेवाड़ा पर कब्जा कर लिया था तक अंग्रेजों की फौज वहां पहुंच चुकी थी। तब अंग्रेज शासक डूरी और गायर भी पहुंचे थे। गायर ने गुंडाधूर के मित्र सोनू मांझी को अपने झांसे में ले लिया। सोनू मांझी ने इसके बाद आदिवासियों से धोखा किया। रात को सोनू मांझी ने अपने साथियों को खूब शराब पिलाई। जब सभी नशे में थे तब अंग्रेस शासक गायर व उसकी फौजे ने उनपर हमला कर दिया। कई आदिवासियों को भून दिया गया। लेकिन गुंडाधूर यहां से बच कर निकल गए।
इंद्रावती नदी के पास हुआ था भयानक युद्ध
इस घटना के बाद से अंग्रेजों ने गुंडाधूर की तलाश तेज कर दी। गायर की फौज पहले से जगदलपुर में थी इधर रायपुर से भी एक फौज जगदलपुर पहुंची। जगदलपुर के निकट पहुंचने के बाद गायर और उसकी फौज इन्द्रावती नदी के पास पहुंचे। 16 फरवरी को जब वे इन्द्रावती नदी पार कर रहे थे तब विद्रोहियों और अंग्रेजी हुकुमत के बीच जमकर युद्ध हुआ। इस युद्ध में आदिवासी नायक गुंडाधूर घायल हो गए। घायल होने के बाद भी गुंडाधूर अंग्रेजों के हाथ नहीं आए। गुंडाधूर के घायल होने के बाद आदिवासियों का आंदोलन भी फीका पड़ गया और सभी जंगलों में छिप गए।
लाख कोशिशों के बाद भी अंग्रेजों के हाथ नहीं आए गुंडाधूर
इसके बाद भी अंग्रेजों ने गुंडाधूर की तालाश खत्म नहीं की। इस दौरान अंग्रेजों को उलनार की पहाड़ियों में गुंडाधूर के होने की जानकारी मिली। इसके बाद अंग्रेजी शासन ने वहां भी भारी फौज के साथ दबिश दी, लेकिन कड़े संघर्ष के बाद भी अंग्रेज गुंडाधूर को पकड़ नहीं पाए। यहां से भी गुंडाधूर वहां से बच निकले। 29 मार्च को अंग्रेजों के द्वारा गुण्डाधूर का पकड़ने आदिवासियों पर कई अत्याचारकिए। निरपराध लोगों को पकड़ने, उन्हें धमकाने व लूटने का कार्य किया जाने लगा, ताकि गुण्डाधूर का पता लग सके।
अंग्रेजों ने इस दौरान आदिवासियों को पकड़कर कड़े मुकदमें चलाये। अग्रेजों के लाख कोशिशों के बाद भी गुंडाधूर को पकड़ने का सपना सपना ही रह गया। गुण्डाधूर ने न ही अपने हथियार डाले और न ही व अंग्रेजों के हाथ आये। इसके बाद गुंडाधूर का कहीं पता नहीं चला। गुंडाधूर के गायब होने के बाद भूमकाल विद्रोह भी पतन की ओर चला गया। लेकिन इस विद्रोह ने इतिहास में अपना नाम दर्ज करा दिया। इसके बाद से ही भूमकाल विद्रोह के रूप में आदिवासियों व गुंडाधूर ने वीरगाथा लिखी।