CHIRMIRI NEWS. SECL चिरमिरी ओपन कास्ट खदान में आज जोरदार धमाका हुआ। जिसमें आठ मजदूर बुरी तरह से घायल हो गए। यह घटना कोई हादसा नहीं, बल्कि सफेदपोश अधिकारियों की जानलेवा लापरवाही का जीता-जागता सबूत है। मुनाफे की अंधी दौड़ में सुरक्षा नियमों को बारूद से उड़ा दिया गया, जिसकी कीमत 8 गरीब मजदूर चुका रहे हैं।

सोमवार का दिन इन मजदूरों के लिए काल बनकर आया। प्रत्यक्षदर्शियों की मानें तो खदान में मौत का सामान बिछाया जा रहा था, लेकिन बेखबर मजदूरों को खतरे के इलाके से हटाने की किसी ने जहमत नहीं उठाई। न कोई जान बचाने वाला सायरन गूंजा, न कोई चेतावनी दी गई। और फिर, एक कान फाड़ देने वाले धमाके ने सब कुछ तहस-नहस कर दिया। चारों तरफ चीख-पुकार, धूल का गुबार और खून से लथपथ तड़पते मजदूर… यह मंजर किसी नरक से कम नहीं था।

सच्चाई पर पर्दा डालने की साजिश!
हद तो तब हो गई जब घायल मजदूरों को गोदरीपारा रीजनल हॉस्पिटल ले जाया गया। यहां मदद के लिए आगे आने के बजाय, SECL प्रबंधन अपनी काली करतूतों पर पर्दा डालने में जुट गया। अस्पताल को एक किले में तब्दील कर दिया गया है। अंदर घायल मजदूर जिंदगी और मौत से जूझ रहे हैं और बाहर उनके बिलखते परिजन और सच्चाई दिखाने पहुंचे पत्रकारों को घुसने तक नहीं दिया गया। यह तानाशाही रवैया चीख-चीखकर कह रहा है कि दाल में कुछ काला नहीं, बल्कि पूरी दाल ही काली है!

AC कमरों में छिपे हैं ‘मौत के सौदागर‘!
जब मजदूर एक-दूसरे का सहारा बनकर खून से लथपथ हालत में अस्पताल पहुंच रहे थे, तब खदान का कोई भी बड़ा अधिकारी मौके पर मौजूद नहीं था। ये वो लोग हैं जो AC कमरों में बैठकर कोयले के उत्पादन का हिसाब तो रखते हैं, लेकिन कोयला निकालने वाले मजदूरों की जान को कीड़े-मकोड़े से ज़्यादा नहीं समझते।

अस्पताल के बाहर मजदूरों और उनके परिजनों का गुस्सा ज्वालामुखी बनकर फूट पड़ा है। हर आंख में आंसू हैं और हर जुबान पर एक ही सवाल – “क्या हमारी जान की कोई कीमत नहीं? क्या दो वक्त की रोटी कमाना इतना बड़ा गुनाह है कि हमें मौत के मुंह में धकेल दिया जाए?”

यह सिर्फ एक ब्लास्ट नहीं है, यह उस सिस्टम के चेहरे पर तमाचा है जो मजदूरों को सिर्फ एक नंबर समझता है। अब सवाल यह उठता है कि क्या इस बार भी जांच के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति होगी या इन 8 जिंदगियों के गुनहगारों को सलाखों के पीछे पहुंचाया जाएगा?