BHILAI. होली के महापर्व से पहले भिलाई में 05 मार्च को हास्य कवि सम्मलेन का भव्य आयोजन सूर्या ट्रेजर आइलैंड में किया गया। इस सम्मलेन में प्रदेशभर के नामचीन कवि अपनी प्रतिभा से सैंकड़ों श्रोताओं के चेहरे पर होली पर्व से पहले मुस्कान बिखेरने के लिए पहुंचे थे। आपका अपना विश्वसनीय वेबपोर्टल tirandaj.com इस कार्यक्रम में मीडिया पार्टनर था। तो वहीं कार्यक्रम में बतौर मुख्यअतिथि अंतर्राष्ट्रीय लोक कलाकार रिखी क्षत्रिय पहुंचे थे। इस कार्यक्रम के स्पोंसर की भूमिका में हेल्थ गुरु और ओबेराय न्यूट्रिशन के यश ओबेराय थे। ये कार्यक्रम रामा कोचिंग द्वारा आयोजित किया गया था।
प्रदेशभर के अलग-अलग क्षेत्रों से कवि अपनी कविता पाठ करने इस कार्यक्रम में पहुंचे थे। इस कवि सम्मेलन का संचालन और संयोजन भिलाई के हास्य कवि गजराज दास महंत ने किया। तो वहीं श्रृंगार रस की कवियित्री गीता ‘गीत’ बिलासपुर, हास्य कवि दाता ‘दीवाना’ भटगांव, भिलाई से मंच पर हास्य कवि भूषण चिपड़े और गीतकार बलराम चंद्राकर भिलाई से कवितापाठ करने इस आयोजन में पहुंचे थे। इन सभी ने अपनी कवितापाठ से सैंकड़ों श्रोताओं का दिल जीत लिया।
कवि गजराज दास महंत ने होली पर सुनाई कविता
राधा मोहन रास मा,
वृन्दावन रस राग।
दिन महीना पूरा बरस,
जइसे होरी फाग ।
दाता दीवाना ने माँ पर दिलछुने वाली कविता का किया पाठ
है जग में जितने भी शब्द, मैं उन शब्दों का सार लिख देता हूँ,,
स्नेह और ममता को समेट कर, मैं उसका आकार लिख देता हूं,,
और कहते हैं माँ शब्द, एक महाकाव्य से भी बड़ा होता है,,
तो बस मैं उस माँ शब्द को, बार बार लिख देता हूँ…
कवयित्री गीता नायक ने अपनी कविता से श्रोताओं का मन मोह लिया
तुम्हे पाने की चाहत में,कठिन दरिया से गुजरी हूं।
कभी मंदिर की चौखट से,कभी दरगाह से उतरी हूं।।
बनी मैं प्रेम में राधा,बनी मैं प्रेम में मीरा।
सहारा दो जरा मोहन, मैं रस प्रीत गगरी हूं।।
भूषण चिपड़े ने अपनी हास्य कविता से किया लोटपोट
मन में है कटरिना, सपने करिना आए
देख के पड़ोसन को, लार टपकात है ।
चाह वाली साथ में है, बाँह वाली बात में है
राह वाली को भी देख, मन मुसकात है।
बचपन बीता जहाँ, देख कर बडे हुए
आज उन्हे देख कर, मन भरमात है ।
सिटी मार मार कर, छेड़ा करते जिन्हें
बच्चे आज उनके जी, मामा ही बुलात है ।
गीतकार बलराम चंद्राकर ने गाय होली गीत
झरै पाना उल्होवै डार,
रे संगी मोर..
फूले परसा फरे तेंदू चार ।
महर-महर बन-डोंगरी झार,
रे संगी मोर..
टपकै गजब मउहा रसदार।।
पिंयर-पिंयर सरसों फूले, घपटे हवै तिवरा ।
चना-मसूर खेत-खार, मगन होवै जिवरा ।।
नीक नीक मुइयाँ के सिंगार,
रे संगी मोर..
फूले परसा फरे तेंदू चार।।
सभी कवियों ने इस हास्य कवि सम्मेलन में अपनी कविता पाठ और गीतों से समां बांध दिया। सैंकड़ों श्रोता मंत्रमुग्ध होकर घंटों इनकी कविताएं सुनते रहे और ठहाके लगाकर लोटपोट होते रहे।