तीरंदाज डेस्क। क्या आपने कभी सुना है कि काई शख्स ऐसा भी होगा जो न किसी धर्म का होगा और न किसी जात का। अधिकतर लोगों को जवाब न में होगा। लेकिन ऐसा नहीं है तमिलनाडु की एक महिला है जो न किसी धर्म से संबंध रखती है और न किसी जाति से उसका लेना देना है।
बकायदा तहसीलदार ने महिला के नाम पर प्रमाण पत्र जारी उसे धर्म व जाति से परे रखा है। हम बात कर रहे हैं तमिलनाडु के तिरुपत्तूर जिले की स्नेहा के बारे में। लोगों को यह जानकर हैरानी होगी कि स्नेहा न किसी जाति से है और न ही किसी धर्म से ताल्लुक रखती है। कुछ समय पहले ही तमिलनाडु सरकार ने स्नेहा को आधिकारिक प्रमाण पत्र जारी किया है।
इसे साथ ही स्नेहा कानूनी रूप से धर्म और जाति रहित प्रमाण पत्र पाने वाली देश की पहली नागरिक बन गई हैं। पेशे से वकील स्नेहा तमिलनाडु के तिरुपथुर की रहने वाली हैं। उन्होंने आज तक कभी भी जन्म प्रमाण पत्र, स्कूल-कॉलेज या अन्य किसी भी दस्तावेज में धर्म और जाति का कॉलम नहीं भरा।
स्नेहा ही नहीं उनका पूरा परिवार बिना किसी जाति-धर्म पहचान के तिरुपथुर में काफी सालों में रह रहा है। इसके पीछे उनके परिवार का तर्क है वे नास्तिक हैं और किसी भी जाति धर्म को नहीं मानते। इसलिए उनके परिवार ने कभी अपने आप को किसी जाति धर्म का नहीं माना।
देश की पहली महिला जिन्हें मिला यह प्रमाणपत्र
माना जा रहा है कि स्नेहा देश की पहली ऐसी नागरिक हैं जिन्हें इस तरह का सर्टिफिकेट मिला है। स्नेहा को यह सर्टिफिकेट पाने के लिए बड़ी लंबी लड़ाई लड़नी पड़ी थी। इसे लेकर उनका कहना था कि जब सरकार जाति प्रमाण पत्र जारी कर यह बता सकती है वह कौन सी जाती है तो इसका प्रमाण पत्र क्यों नहीं दे सकती की उसकी कोई जाति नहीं है।
बच्चों के नाम अलग अलग धर्मों से
बिना धर्म की स्नेहा ने अपने बच्चों के नाम भी खास रखे हैं। उन्होंने अपनी तन बेटियों के नाम बौद्ध, ईसाई और मुस्लिम धर्म के अनुसार रखे हैं। इनमें से एक का नाम आधीराई नसरीन है। बाकी दो के नाम अथिला ईरानी और आरिफा जेस्सी है। उनका कहना है कि जो नाम अच्छा लगे रख दो इसमें किसी धर्म विशेष की बात नहीं है।
स्नेहा ने बताया कि उनके माता-पिता, बहन, पति उनकी बेटियां बिना किसी जाति और धर्म के रहती हैं। उन्होंने बताया, ‘स्कूल में जब भी मुझसे और मेरी बहनों से हमारे धर्म और जाति के बारे में पूछा जाता था तो हमारा एक ही जवाब होता था नो कास्ट-नो रिलिजियन यानी न जाति, न धर्म।
लंबे संघर्ष के बाद मिली सफलता कामयाबी
स्नेहा ने कहा कि कई अदालतों व सरकार के आदेश हैं कि किसी को भी प्रमाणपत्रों में जाति के नाम का उल्लेख करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है। इसके बाद भी स्कूल छात्रों के प्रमाणपत्रों में जाति और समुदाय का उल्लेख करते हैं।
स्नेहा ने कहा एक वकील होने के नाते मैं इस बैरियर को तोड़ना चाहती थी। मेरे नौ साल के संघर्ष, लगातार प्रयास के बाद यह सफल हो पाया है। मैं इस प्रमाणपत्र को पाने के लिए अंतिम बार मई 2017 में आवेदन किया था। अब सरकार ने मुझे बिना जाति-धर्म नहीं वाला प्रमाणपत्र जारी किया है।